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अश्वगंधा की खेती के लिए बीज बोने का तरीका
औषधीय गुण वाला अश्वगंधा
उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जब सितंबर और अक्टूबर में बारिश की गतिविधियां कम हो जाती हैं तब किसान इसकी बुवाई करते हैं. अश्वगंधा एक कठोर और सूखा सहिष्णु पौधा है। इसको भारतीय जिनसेंग या जहर आंवला या शीतकालीन चेरी के रूप में भी जाना जाता है और यह भारत के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भागों में उगाया जाने वाला एक देशी औषधीय पौधा है. अश्वगंधा जड़ी बूटी एक महत्वपूर्ण प्राचीन पौधा है जिसकी जड़ों का उपयोग भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति जैसे आयुर्वेद और यूनानी में किया गया है।भारत में कहां-कहां होती है अश्वगंधा की वैज्ञानिक खेती
भारत में इसकी खेती 1500 मीटर की ऊंचाई तक के सभी क्षेत्रों में की जा रही है। भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती की जाती है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। मध्य प्रदेश के मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा और मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा जिलों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है। बता दें कि भारत में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन प्रति वर्ष 2000 टन है। जबकि जड़ की मांग 7,000 टन प्रति वर्ष है।
अश्वगंधा से होने वाले स्वास्थ्य लाभ -
- अश्वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है।
- अश्वगंधा कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है।
- अश्वगंधा रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- अश्वगंधा दिल के लिए अच्छा होता है।
- अश्वगंधा कोलेजन को उत्तेजित करता है और घाव भरने में मदद करता है।
- अश्वगंधा अवसाद, तनाव और चिंता कम करता है।
- अश्वगंधा निष्क्रिय थायराइड को उत्तेजित करता है।
- अश्वगंधा मांसपेशियों और ताकत को बढ़ाता है।
- अश्वगंधा सूजन और दर्द कम करने में मदद करता है।
- अश्वगंधा याददाश्त और संज्ञानात्मक प्रदर्शन को बढ़ाता है।
- अश्वगंधा प्रजनन प्रणाली को लाभ पहुंचाता है।
- अश्वगंधा ऊर्जा के स्तर और जीवन शक्ति को बढ़ाता है।
- अश्वगंधा जोड़ों और आंखों के लिए अच्छा है।
- अश्वगंधा कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है।
अश्वगंधा की खेती में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग
अश्वगंधा के बीजों की बुवाई से एक माह पूर्व प्रति हेक्टेअर पांच ट्रॉली गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में मिला देना चाहिए। बोआई के समय 15 किग्रा नत्रजन व 15 किग्रा फास्फोरस का छिडक़ाव करना चाहिए।
अश्वगंधा में सिंचाई
अश्वगंधा में नियमित समय से वर्षा होने पर फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन आवश्यकता पडऩे पर इसकी सिंचाई की जा सकती है। सिंचित अवस्था में खेती करने पर पहली सिंचाई करने के 15-20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद अगर नियमित वर्षा होती रहे तो पानी देने की आवश्यकता नहीं रहती है। बाद में महीने में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए। अगर बीच में वर्षा हो जाए तो सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है। वर्षा न होने पर जीवन रक्षक सिंचाई करनी चाहिए। अधिक वर्षा या सिंचाई से फसल को हानि हो सकती है। 4 ई.सी. से 12 ई.सी. तक वाले खारे पानी से सिंचाई करने से इसकी पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि इसकी गुणवत्ता 2 से 2.5 गुणा बढ़ जाती है।
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