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अश्वगंधा एक औषधि है। खेती कर लाखो का करे फायदा,



किसान परंपरागत फसलों को छोड़कर नकदी और मेडिसिनल प्लांट की खेती कर रहे हैं। इससे उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने में भी काफी मदद मिल रही है। अगर आप भी अश्वगंधा की खेती करके अच्छी खासी कमाई करना चाहते हैं तो हम आपको इस बारे में विस्तार से जानकारी दे रहे हैं। अन्य फसलों की तुलना प्राकृतिक आपदा का खतरा भी इस पर कम होता है। 

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अश्वगंधा की माँग इसके अधिक गुणकारी होने के कारण बढ़ती जा रही है।  अश्वगंधा की खेती सितंबर-अक्टूबर के महीने में सबसे ज्यादा की जाती है, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अश्वगंधा की सबसे ज्यादा खेती होती है।  अश्वगंधा के फल, बीज और छाल का प्रयोग कर कई प्रकार की दवाइयां बनाई जाती हैं। 

अश्वगंधा एक औषधि पोधा है। इसे बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी माना जाता है। आयुवेर्दिक दवाओं में इसका उपयोग होता है। सभी जड़ी बूटियों में से अश्वगंधा सबसे अधिक प्रसिद्ध जड़ी बूटी मानी जाती है।  

अन्य फसलों की तुलना प्राकृतिक आपदा का खतरा भी इस पर कम होता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में अश्वगंधा की माँग इसके अधिक गुणकारी होने के कारण बढ़ती जा रही है। 

https://www.gaonconnection.com/kheti-kisani/earn-more-profits-from-ashwagandha-crop-adopting-advanced-agricultural-techniques-43541 

अश्वगंधा की खेती के लिए बीज बोने का तरीका 

अश्वगंधा की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलो बीज की जरूरत होती है, सामान्य तौर पर बीज का अंकुरण 7 से 8 दिन में हो जाता है. अश्वगंधा की दो प्रकार से बुवाई की जाती है। पहली विधि है कतार विधि. इसमें पौधे से पौधे की दूरी 5 सेंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर रखी जाती है। दूसरी विधि में छिड़काव विधि से अश्वगंधा की अच्छी तरीके से होती है, हल्की जुताई कर खेत में रेट का छिड़काव किया जाता है। 1 मीटर में 40 पौधे लगाए जाते हैं, अश्वगंधा की कटाई जनवरी से लेकर मार्च तक होती है। 
जड़ को छोटे-छोटे टुकड़े में काटा जाता है और इसे सुखाकर रखा जाता है।  पौधों को जड़ से अलग कर रखा जाता है, अश्वगंधा के बीज और फूल को सुखाकर अलग कर लिया जाता है।  

औषधीय गुण वाला अश्वगंधा

उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जब सितंबर और अक्टूबर में बारिश की गतिविधियां कम हो जाती हैं तब किसान इसकी बुवाई करते हैं. अश्वगंधा एक कठोर और सूखा सहिष्णु पौधा है।  इसको भारतीय जिनसेंग या जहर आंवला या शीतकालीन चेरी के रूप में भी जाना जाता है और यह भारत के उत्तर-पश्चिमी और मध्य भागों में उगाया जाने वाला एक देशी औषधीय पौधा है. अश्वगंधा जड़ी बूटी एक महत्वपूर्ण प्राचीन पौधा है जिसकी जड़ों का उपयोग भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति जैसे आयुर्वेद और यूनानी में किया गया है। 

भारत में कहां-कहां होती है अश्वगंधा की वैज्ञानिक खेती

भारत में इसकी खेती 1500 मीटर की ऊंचाई तक के सभी क्षेत्रों में की जा रही है। भारत के पश्चिमोत्तर भाग राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश आदि प्रदेशों में अश्वगंधा की खेती की जाती है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अश्वगंधा की खेती बड़े स्तर पर की जाती है। मध्य प्रदेश के मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा और मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा जिलों में अश्वगंधा की खेती की जा रही है। बता दें कि भारत में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन प्रति वर्ष 2000 टन है। जबकि जड़ की मांग 7,000 टन प्रति वर्ष है। 

अश्वगंधा से होने वाले स्वास्थ्य लाभ -

  1. अश्वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है। 
  2. अश्वगंधा कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है। 
  3. अश्वगंधा रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। 
  4. अश्वगंधा दिल के लिए अच्छा होता है। 
  5. अश्वगंधा कोलेजन को उत्तेजित करता है और घाव भरने में मदद करता है। 
  6. अश्वगंधा अवसाद, तनाव और चिंता कम करता है। 
  7. अश्वगंधा निष्क्रिय थायराइड को उत्तेजित करता है। 
  8. अश्वगंधा मांसपेशियों और ताकत को बढ़ाता है। 
  9. अश्वगंधा सूजन और दर्द कम करने में मदद करता है। 
  10. अश्वगंधा याददाश्त और संज्ञानात्मक प्रदर्शन को बढ़ाता है। 
  11. अश्वगंधा प्रजनन प्रणाली को लाभ पहुंचाता है। 
  12. अश्वगंधा ऊर्जा के स्तर और जीवन शक्ति को बढ़ाता है। 
  13. अश्वगंधा जोड़ों और आंखों के लिए अच्छा है। 
  14. अश्वगंधा कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। 

अश्वगंधा की खेती में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

अश्वगंधा के बीजों की बुवाई से एक माह पूर्व प्रति हेक्टेअर पांच ट्रॉली गोबर की खाद या कंपोस्ट की खाद खेत में मिला देना चाहिए। बोआई के समय 15 किग्रा नत्रजन व 15 किग्रा फास्फोरस का छिडक़ाव करना चाहिए। 

अश्वगंधा में सिंचाई 

अश्वगंधा में नियमित समय से वर्षा होने पर फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन आवश्यकता पडऩे पर इसकी सिंचाई की जा सकती है। सिंचित अवस्था में खेती करने पर पहली सिंचाई करने के 15-20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद अगर नियमित वर्षा होती रहे तो पानी देने की आवश्यकता नहीं रहती है। बाद में महीने में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए। अगर बीच में वर्षा हो जाए तो सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है। वर्षा न होने पर जीवन रक्षक सिंचाई करनी चाहिए। अधिक वर्षा या सिंचाई से फसल को हानि हो सकती है। 4 ई.सी. से 12 ई.सी. तक वाले खारे पानी से सिंचाई करने से इसकी पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि इसकी गुणवत्ता 2 से 2.5 गुणा बढ़ जाती है।

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