हरछठ व्रत कैसे करते है👇
भाद्र कृष्णा षष्टी को यह व्रत और पूजन होता है। व्रत रहने वाली स्त्रियाँ उस दिन महुआ की दातून करती हैं। ज्यादातर लड़के वाली स्त्री ही यह व्रत करती है। हरछठ के उपवास मे हल द्वारा जोता-बोया हुआ अन्न या कोई फल नहीं खाया जाता। गाय का दूध-दही भी मना है। सिर्फ भैंस के दूध-दही या घी स्त्रियां काम में लाती है। शाम के समय पूजा के लिए मालिन हरछठ बनाकर लाती है। उसमें झडबेरी, कास और पलास तीनो की एक- एक डालियाँ एकत्र बँधी होती हैं। ज़मीन लीपकर और चौक पूरकर स्त्रियाँ हरछट वाले गुलदस्ते को गाड़ देती हैं। कच्चे सूत का जनेऊ पहनाकर तब उसको चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, नैवैद्य यादि से पूजा करती हैं। पूजा मे सतनजा (गेहूँ, चना, जुआर, अरहर, धान, मूँग, मक्का ) चढ़ाकर सूखी धूलि, हरी कजरियाँ, होली की राख या चने का होरहा, और होली की भुनी गेहूँ की बाल भी चढ़ाती हैं। इसके अलावा कुछ गहना, हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा आदि चीज़ों को भी हरछठ के आसपास रख देती हैं। पूजा के अन्त में भैंस के मक्खन का भोग किया जाता है। तब कथा कही जाती है। हरछठ को श्रावण के त्योहारों की अन्तिम अवधि समभनी चाहिए।
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भारत भर में हरछठ जिसे हलषष्ठी भी कहते है, कही कही
इसे ललई छठ भी कहते है। हरछठ का व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की
षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व
भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलराम के
जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। इसी को
बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
हरछठ की कथा – हलषष्ठी व्रत कथा हिंदी
हरछठ की कथा इस प्रकार है कि एक ग्वालिन गर्भ से थी। एक तरफ तो उसका पेट
दर्द कर रहा था, दूसरी तरफ उसका दही-दूध बेचने को रखा था। उसने अपने मन में
सोचा कि यदि बच्चा हो जायेगा तो फिर दही-दूध न बिक सकेगा। इस कारण जल्द
जाकर बेच आना चाहिए।
वह दही- दूध की मटकियाँ सर पर रखकर घर से चली।वह चलती हुईं एक खेत के पास पहुँची। खेत मे किसान हल जोत रहा था। उसी जगह
स्त्री के पेट में अधिक पीड़ा होने लगी। वह भडबेरी के झाड़ों को आड़ मे उसी
जगह बैठ गई और लड़का पैदा हो गया। उसने लडके को कपडे सें लपेटकर उसी जगह
रख दिया और स्वयं दही-दूध बेचने चली गई।उस दिन हरछठ थी। उसका दूध गाय-भैंस का मिला हुआ था, परन्तु ग्वालिन ने अपने
दही-दूध को केवल भैंस का बतलाकर गाँव में बेच दिया। इधर हलवाले के बैल
विदककर खेत की मेड़ पर चढ़ गये। हलवाले को क्या मालूम था कि यहाँ बच्चा
रखा है। दुर्भाग्यवश हल की नोक लड़के के पेट मे लग गई, उसका पेट फट गया और
वह मर भी गया। हलवाले को इस घटना पर बहुत दुःख हुआ, पर लाचारी थी। उसने
झड़बेरी के कॉटों से लड़के के पेट मे टाँके लगा दिए और उसे यथास्थान पड़ा
रहने दिया।इतने में ग्वालिन दूध-दही बेचकर आई।
उसने जो देखा तो बालक मरा पड़ा था। वह
समझ गई कि यह मेरे पाप का परिणाम है। मैने अपना दूध-दही बेचने के लिए झूठी
बात कहकर सब व्रत वालियों का धर्म नष्ट किया। यह उसी की सज़ा है। अब मुझे
जाकर अपना पाप प्रकट कर देना चाहिये। आगे भगवान की जो मरजी होगी।यह निश्चय करके यह उसी गाँव को फिर वापस चली गई, जहाँ दूध बेचकर आईं थी।
उसने वहाँ गली-गली घूमकर कहना शुरू किया— मेरा दही-दूध गाय-भैंस का मिला
हुआ था। यह सुनकर स्त्रियों ने उसे आशीर्वाद देने शुरू किये। उन्होंने कहा–
तूने बहुत अच्छा किया जो सच-सच कह दिया। तूने हमारा धर्म रखा।
ईश्वर तेरी
लज्जा रखे। तू बढ़े, तेरा पूत बढ़े।अनेक स्त्रियों के ऐसे आशीर्वाद लेकर वह फिर उसी खेत पर गई, तो उसने देखा
कि लड़का पलास की छाया मे पड़ा खेल रहा है। उसी समय से उसने प्रण किया कि
अब अपना पाप छिपाने के लिए झूठ कभी न बोलूगी। क्योंकि पाप का परिणाम बुरा
होता है। जिस पाप को छिपाने के लिए झूठ बोला जाता है, वह भी उम्र हो जाता
है और झूठ बोलने का दूसरा पाप सिर चढ़ता है। HJK
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