धनतेरस का महत्व-
धनतेरस पर धन्वंतरि देव और मां
लक्ष्मी की पूजा का विधान बताया गया है, लक्ष्मी जी को धन की देवी माना गया
है, लक्ष्मी जी की कृपा से वैभव, सुख समृद्धि प्राप्त होती है. जिन लोगों
पर लक्ष्मी जी का आशीर्वाद बना रहता है, उनका जीवन कष्ट, बाधा और
परेशानियों से मुक्त रहता है, तो यह पर्व मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर को समर्पित है। धनतेरस के दिन धन्वंतरि देव और मां लक्ष्मी की पूजा करने से
जीवन में कभी धन की कमी नहीं रहती है। इस दिन भगवान कुबेर की पूजा की भी
विधान है।
धनतेरस 2021 शुभ मुहूर्त-
धनतेरस-तिथि-11-02-2021दिन,मंगलवार
धन त्रयोदशी पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 5 बजकर 25 मिनट से
शाम 6 बजे तक।
प्रदोषकाल-शाम.05बजकर39मिनट-से-20:14॰बजे.तक। वृषभ काल- शाम 06:51 से 20:47 तक।
धनतेरस पूजा विधि-
- सबसे पहले चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
- अब गंगाजल छिड़कर भगवान धन्वंतरि, माता
महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।
- भगवान के सामने देसी घी का दीपक, धूप
और अगरबत्ती जलाएं।
- अब देवी-देवताओं को लाल फूल अर्पित करें।
- अब आपने इस दिन जिस भी धातु या फिर बर्तन अथवा ज्वेलरी की
खरीदारी की है, उसे चौकी पर रखें।
- लक्ष्मी स्तोत्र,
लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी
यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र का पाठ करें।
- धनतेरस की पूजा के दौरान लक्ष्मी माता के मंत्रों का जाप
करें और मिठाई का भोग भी लगाएं।
भगवान धन्वंतरि की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार
धन्वंतरि देव को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। इन्हें 12वां अवतार भी
माना गया है। धन्वंतरि को आयुर्वेद का जन्मदाता भी कहा गया है. इसीलिए
इन्हें देव चिकित्सक का दर्जा प्राप्त है, धन्वंतरि भगवान का जन्म समुद्र
मंथन से हुआ था। कार्तिक मास की त्रयोदशी की तिथि में समुद्र मंथन से भगवान
धन्वंतरि प्रकट हुए थे, भगवान धन्वंतरि कई ग्रंथों के रचयिता भी हैं ।धन्वंतरि संहिता की रचना भी धन्वंतरि देव ने ही की थी, जो आयुर्वेद का मूल
ग्रंथ माना जाता है।
क्यों मनाया जाता है धनतेरस-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब प्रभु धन्वंतरि प्रकट हुए थे तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। इस तिथि को धन्वंतरि जयंती या धन त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं। इस दिन बर्तन और गहने आदि की खरीदारी करना बेहद शुभ होता है।
आज के दिन क्या करें और क्या न करें
इस दिन
धन का अपव्यय नहीं किया जाता है, किसी को उधार या कर्ज भी नहीं दिया जाता है, तांबे, पीतल, चांदी के
गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करें, मंदिर, गोशाला, नदी के
घाट, कुआं, तालाब, बगीचों
में भी दीपक लगाएं, इस दिन
लोग व्यापार में भी लेन देन करने से बचते हैं. सांयकाल 6 बजकर 40 से 8 बजकर 30 मिनट के
बीच महाप्रदोषकाल में यमराज की प्रसन्नता के लिए 111 दिए का
दान करना श्रेष्ठ होता है, जलाभाव के कारण चार दिवारी
या खाली स्थान में भी या चबूतरे में रखकर भी दीपदान किया जा सकता है।
0 Comments