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चीन का मुकाबला करने के लिए एकजुट हुए जी-7 देश,

 


अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा कि वो चाहते हैं कि अमेरिका समर्थित 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड' (बी3डब्ल्यू) प्लान, इसी तरह की चीनी योजना के सामने एक उच्च गुणवत्ता वाले विकल्प के तौर पर खड़ा हो। 

चीन की 'बेल्ट एंड रोड परिजोयना' (बीआरआई) ने कई देशों में ट्रेनों, सड़कों और बंदरगाहों को सुधारने के लिए आर्थिक मदद की है। 


लेकिन इस बात को लेकर चीन की आलोचना भी होती रही है कि उसने कुछ देशों को कर्ज़ में दबाने के बाद, उन पर 'हुकूमत जमाने' की कोशिश भी की.जी7 नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा कि "वो मूल्यों द्वारा संचालित, उच्च-मानकों वाली, एक पारदर्शी साझेदारी की पेशकश करेंगे."हालांकि, इस बारे में अभी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है कि इस जी7 योजना के तहत कैसे वित्‍तपोषित किया जायेगा। जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा कि जी7 की यह योजना अभी उस चरण में नहीं है, जब वित्तपोषण के बारे में जानकारी सार्वजनिक की जा सकें। अमेरिका विशेष रूप से चीन की तथाकथित 'ऋण कूटनीति' की आलोचना करता रहा है। जी7 में दुनिया के सात सबसे धनी लोकतांत्रिक देश शामिल हैं. इसमें अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली और जापान का नाम है। 

ब्रिटेन इस बार के जी-7 सम्मेलन का मेज़बान है जिसने यूके के कारबिस बे रिज़ॉर्ट में यह तीन-दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया है. इस सम्मेलन का समापन रविवार शाम को होना है। 


G7 समूह क्या है और यह क्या करता है

जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी कथित विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमरीका शामिल हैं. इसे ग्रुप ऑफ़ सेवन भी कहते हैं। समूह खुद को "कम्यूनिटी ऑफ़ वैल्यूज" यानी मूल्यों का आदर करने वाला समुदाय मानता है. स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और क़ानून का शासन और समृद्धि और सतत विकास, इसके प्रमुख सिद्धांत हैं.शुरुआत में यह छह देशों का समूह था, जिसकी पहली बैठक 1975 में हुई थी. इस बैठक में वैश्विक आर्थिक संकट के संभावित समाधानों पर विचार किया गया था। अगले साल कनाडा इस समूह में शामिल हो गया और इस तरह यह जी-7 बन गया.जी-7 देशों के मंत्री और नौकरशाह आपसी हितों के मामलों पर चर्चा करने के लिए हर साल मिलते हैं। 

प्रत्येक सदस्य देश बारी-बारी से इस समूह की अध्यक्षता करता है और दो दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करता है। यह प्रक्रिया एक चक्र में चलती है।  ऊर्जा नीति, जलवायु परिवर्तन, एचआईवी-एड्स और वैश्विक सुरक्षा जैसे कुछ विषय हैं।  जिन पर पिछले शिखर सम्मेलनों में चर्चाएं हुई थीं। शिखर सम्मेलन के अंत में एक सूचना जारी की जाती है, जिसमें सहमति वाले बिंदुओं का जिक्र होता है। 

सम्मलेन में भाग लेने वाले लोगों में जी-7 देशों के राष्ट्र प्रमुख, यूरोपीयन कमीशन और यूरोपीयन काउंसिल के अध्यक्ष शामिल होते हैं। यूरोपीयन कमीशन के अध्यक्ष ज्यां क्लॉड यंकर हैं। जो स्वास्थ्य कारणों से इस बार के सम्मेलन में भाग नहीं ले रहे हैं। वहीं यूरोपीयन काउंसिल के वर्तमान अध्यक्ष डोनल्ड टस्क हैं, जो इस सम्मेलन में भाग ले रहे हैं। 

शिखर सम्मेलन में अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इस साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है। 

इस बार शिखर सम्मेलन में चर्चा का मुख्य विषय "असमानता के ख़िलाफ़ लड़ाई" है। हर साल शिखर सम्मेलन के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन होते हैं. पर्यावरण कार्यकर्ताओं से लेकर पूंजीवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले संगठन इन विरोध-प्रदर्शनों में शामिल होते हैं। प्रदर्शनकारियों को आयोजन स्थल से दूर रखने के लिए बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की जाती है। 


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