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अर्जुन वृक्ष की जानकारी और प्रयोग (Arjun Tree)

 


अर्जुनाख्य, वीर, वीरवृक्ष, धवल, ककुभ, नदीसर्ज, इंद्रदु ये सभी अर्जुन वृक्ष के नाम है। इसके अतिरिक्त वीर योद्धा कुन्तीपुत्र, गांडीवधारी अर्जुन के सभी १२ नाम भी इस वृक्ष के हैं। हिंदी में इसे कोह, कौह, अर्जुन और लैटिन में र्मिनेलिया अर्जुन कहते हैं।

यह एक औषधीय वृक्ष है और आयुर्वेद में हृदय रोगों में प्रयुक्त औषधियों में प्रमुख है। अर्जुन का वृक्ष आयुर्वेद में प्राचीन समय से हृदय रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जा रहा है। औषधि की तरह, पेड़ की छाल को चूर्ण, काढा, क्षीर पाक, अरिष्ट आदि की तरह लिया जाता है।सातवीं शताब्दी में वागभट्ट के ग्रंथों में इसके प्रयोगों के बारे में विस्तार से लिखा गया है। उन्होंने कफ के कारण होने वाले हृदय रोगों में इसके लाभ के बारे में बताया है। पित्तज हृदय रोग में अर्जुन की छाल को दूध में पीने को कहा गया है। बांगसेन के अनुसार, अर्जुन की छाल के चूर्ण और गेंहू के चूर्ण को बराबर मात्रा में गाय के दूध में उबाल कर लेना चाहिए।

अर्जुन की छाल से बनी दवा अर्जुनारिष्ट तो बहुत ही प्रसिद्ध है। यह हृदय रोगों में अत्यंत लाभकारी है। इसके सेवन दिल की अनियमित धड़कन में आराम पहुँचता है और उच्च रक्चाप भी कम होता है। अर्जुन क्षीर पाक का सेवन हृदय को पोषण देता है और उसकी रक्षा करता है। यह उसे बल देता है तथा रक्त को भी शुद्ध करता है।

सामान्य जानकारी

  • अर्जुन का अर्थ होता है चांदी की तरह और इस वृक्ष की छाल बाहर से चमकीली और सफ़ेद सी लगती है तथा यह ताकत देता है, और संभवतः इसलिए इसे अर्जुन नाम दिया गया है।
  • यह एक बड़ा वृक्ष है। इसकी उंचाई 60-80 फुट हो सकती है। इसका तना मोटा और शाखाएं फैली हुई होती हैं।
  • इसके पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह देखने में होते हैं। वे 10-15 सेमी लम्बे 4-7 सेमी चौड़े और विपरीत क्रम में होते हैं। पत्ते ऊपर से चिकने और पिच्छे से खुरदरे होते हैं। इसके फल 1-2 इंच लम्बे होते हैं। फलों में उभार होते हैं।
  • अर्जुन का वृक्ष, उत्तर प्रदेश, बिहार, दक्कन, समेत पूरे भारत में पाया जाता है। इसकी लगभग 15 किस्में हैं। यह मुख्य रूप से नदी-नालों के के किनारे पैदा होता है। अर्जुन के पेड़ पर एक प्रकार का गोंद भी लगता है जो खाने के काम आता है।
  • प्राप्ति स्थान:- पूरे भारतवर्ष में विशेषतः हिमालय की तराई, छोटा नागपुर, मध्य भारत, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, चेन्नई के जंगलों में, सड़क के किनारे, नदी के समीप
  • उत्पत्ति:- भारत
  • त्वक छाल:- चिकनी और हल्के सफ़ेद रंग की
  • पुष्पकाल:- बैशाख, जेठ और कभी-कभी आषाढ़
  • पुष्प:- बहुत छोटे, हरे रंग के जिनपर सफेद मंजरी होती है
  • फल:- अगहन, पौष में पकता है।
  • फल का आकार:- कमरख की तरह, कंगूरेदार लम्बे और उभार युक्त ।
  • औषधीय हिस्से:- त्वक/ छाल, पत्ते, और फल
  • छाल की वीर्यकाल अवधि:- दो साल              अर्जुन की छाल में करीब 20-24% टैनिन पाया जाता है। छाल में बीटा-सिटोस्टिरोल, इलेजिक एसिड, ट्राईहाइड्रोक्सी – ट्राईटरपीन मोनो कार्बोक्सिलिक एसिड, अर्जुनिक एसिड, आदि भी पाए जाते हैं। इसमें ग्लूकोसाइड अर्जुनीन, और अर्जुनोलीन भी इसमें पाया जाता है। पेड़ की छाल में पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनिशियम के साल्ट भी पाए जाते हैं।                

अर्जुन के औषधीय उपयोग-

  1. अर्जुन की छाल, ज्वरनाशक, मूत्रल, और अतिसार नष्ट करने वाली होती है। यह उच्च रक्तचाप को कम करती है। जब चोट पर नील पड़ जाए तो इसकी छाल का सेवन दूध के साथ करना चाहिए।
  2. लीवर सिरोसिस में इसे टोनिक की तरह प्रयोग किया जाता है।
  3. मानसिक तनाव, दिल की अनियमित धड़कन, उच्च रक्चाप में इसका सेवन लाभदायक है।
  4. मासिक में अधिक रक्स्राव हो रहा हो तो, अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण को एक कप दूध में उबालें। जब दूध आधा रह जाए तो थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलकर, दिन में तीन बार सेवन करें।
  5. कान के दर्द में इसके पत्तों का रस टपकाते हैं। ब्लीडिंग डिसऑर्डर / रक्त पित्त तथा पुराने बुखार में इसका सेवन लाभदायक है।
  6. इसका सेवन शरीर को शीतलता देता है। शरीर में पित्त बढ़ा हुआ हो तो इसका सेवन करें।
  7. अर्जुन के छाल का काढ़ा पीने से पेशाब रोगों में लाभ होता है। यह मूत्रल है।
  8. छाल का सेवन शरीर को बल देता है।
  9. अर्जुन की छाल को रात भर पानी में भिगो, सुबह मसलकर छान कर पीते हैं। ऐसा एक महीने तक करने से उच्च रक्तचाप, चमड़ी के रोग, यौन रोग, अस्थमा, पेचिश, मासिक में ज्यादा खून जाना और पाचन में लाभ होता है।
  10. शरीर में विष होने पर छाल का काढ़ा लाभप्रद है।
  11. यह रक्त पित्त में बहुत उपयोगी है।
  12. अर्जुन छाल के हृदय के लिए लाभ
  13. यह सभी प्रकार के हृदय रोगों में फायदेमंद है।
  14. यह अनियमित धड़कन, संकुचन को दूर करता है। regulates heart beat
  15. यह हृदय की सूजन को दूर करता है।
  16. यह हृदय को ताकत देने वाली औषध है। nourishes heart muscle, prevents arterial clogging
  17. यह स्ट्रोक के खतरे को कम करता है। reduces blood clots, reverses hardening of the blood vessels
  18. यह कोलेस्ट्रोल को कम करता है।
  19. यह उच्च रक्तचाप को कम करता है।
  20. यह लिपिड, ट्राइग्लिसराइड लेवल को कम करता है।
  21. इसका सेवन एनजाइना के दर्द को धीरे-धीरे कम करता है। prevents and helps in the recovery from angina
  22. यह वज़न को कम करता है।
  23. यह ब्लड वेसल को फैला देता है।
  24. यह रक्त प्रवाह के अवरोध को दूर करता है।
  25. यह हृदय के अत्यंत लाभकारी है। 
  26. यह दिल की मांसपेशियों को मज़बूत करता है।
  27. यह हृदय के ब्लॉकेज में लाभदायक है।     


अर्जुन के आयुर्वेदिक गुण और कर्म-
  

अर्जुन के पेड़ की छाल को मुख्य रूप से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह कषाय, शीतवीर्य, दर्द दूर करने वाली, कफ, पित्त को कम करने वाली औषध है। यह मेद को कम करती है। यह हृदय के लिए अत्यंत हितकारी है। यह कान्तिजनक और बलदायक औषध है। अर्जुन की छाल हृदय रोग, विषबाधा, रक्त विकार, कफ-पित्त दोष, और बहुत भूख और प्यास लगने के रोग में प्रयोग की जाती है।

  1. स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाला और लघु है। स्वभाव से यह शीतल है और कटु विपाक है। यह कटु रस औषधि है। यह कफ-पित्त रोगों में बहुत लाभप्रद होता है।

    • रस (taste on tongue): कषाय
    • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
    • वीर्य (Potency): शीत
    • विपाक (transformed state after digestion): कटु

    कर्म:

    • हृदय: हृदय के लिए लाभकारी
    • रक्त्त स्तंभक, रक्तपित्त शामक, प्रमेहनाशक
    • कफहर पित्तहर विषहर
    • प्रभाव: हृदय के लिए टॉनिक

सावधानी-

अर्जुन आयुर्वेद की एक निरापद औषध है।

इसका प्रयोग किसी भी तरह के साइड-इफेक्ट पैदा नहीं करता।

लम्बे समय तक इसका प्रयोग पूरी तरह से सुरक्षित है।

यह टॉक्सिक नहीं है।

इसे गर्भावस्था में प्रयोग न करें।

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