23 मार्च की तारीख़ को भारत में शहीद दिवस के तौर पर मनाया जाता है, साल 1931 में इस दिन स्वतंत्रता आंदोलनकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी।
रक्तदान शिविर के आयोजक आलोक अग्रवाल ने बताया कि भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु के 90वें बलिदान दिवस के अवसर पर रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया है। उन्होंने बताया कि निफा द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक मुहिम संवेदना के तहत पूरे देश में रक्तदान शिविर आयोजित किए जा रहे हैं। उन्होंने रक्तदान से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करते हुए कहा कि रक्तदान से कोई हानि नहीं है। समय - समय पर रक्तदान शिविरों का आयोजन करके थैलेसीमिया, कैंसर, एड्स, हीमोफीलिया जैसी घातक बीमारियों के मरीजों सहित एक्सीडेंट में घायल मरीजों, गर्भवती महिलाओं एवं अन्य लोगों की रक्त की आवश्यकता को पूरा करने का हरसंभव प्रयास लगातार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि रक्तदान अवश्य करना चाहिए। संदीप उपाध्याय ने बताया कि रक्तदान शिविर के आयोजन के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में निफा संस्था अपना नाम दर्ज करवा चुकी है। उन्होंने कहा कि पूरे देश में 15 सौ से अधिक रक्तदान शिविर आयोजित किए जा रहे हैं।
सॉन्डर्स मर्डर केस में जज ने इसी कलम से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के लिए फांसी की सज़ा लिखी थी |
रक्तदान शिविर में पहली बार रक्तदान करने पहुंचे दिनेश अग्रवाल ने बताया कि पहले उन्हें रक्तदान को लेकर भ्रांतियां थी। लेकिन लगातार लोगों को रक्तदान करते देख मुझे रक्तदान करने की प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा कि रक्तदान करके बहुत अच्छा लग रहा है और लोगों को रक्तदान अवश्य करना चाहिए।
शिविर के आयोजन में अग्रवाल सभा बलरामपुर एवं संयुक्त चिकित्सालय स्थित ब्लड बैंक का विशेष योगदान रहा। शिविर के अंत में आयोजक आलोक अग्रवाल ने जनपदवासियों द्वारा समय समय पर आयोजित किए जाने वाले रक्तदान शिविरों में लगातार आकर रक्तदान करने की सराहना की है और उनके द्वारा दिये जा रहे सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया है।
दुर्गा दास ने ख़बर दी पूरी दुनिया को-
असेंबली बम केस में लाहौर की सीआईडी ने ये गोला बरामद किया था |
जैसे ही बम फटा लगा इंकलाब ज़िदाबाद का नारा
भगत सिंह ने बम फेंकते समय इस बात का ध्यान रखा कि वो उसे कुर्सी पर बैठे हुए सदस्यों से थोड़ी दूर पर फ़र्श पर लुढ़काएं ताकि सदस्य उसकी चपेट में न आ सकें।
जैसे ही बम फटा ज़ोर की आवाज़ हुई और पूरा असेंबली हॉल अँधकार में डूब गया, दर्शक दीर्घा में अफ़रातफ़री मच गई. तभी बटुकेश्वर दत्त ने दूसरा बम फेंका. दर्शक दीर्घा में मौजूद लोगों ने बाहर के दरवाज़े की तरफ़ भागना शुरू कर दिया।
कुलदीप नैयर अपनी किताब 'विद आउट फ़ियर - द लाइफ़ एंड ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह' में लिखते हैं, 'ये बम कम क्षमता के थे और इस तरह फेंके गए थे कि किसी की जान न जाए. बम फ़ेंकने के तुरंत बाद दर्शक दीर्घा से 'इंकलाब ज़िदाबाद' के नारों के साथ पेड़ के पत्तों की तरह पर्चे नीचे गिरने लगे, उसका मज़मून ख़ुद भगत सिंह ने लिखा था. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन पार्टी के लेटरहेड पर उसकी 30-40 प्रतियाँ टाइप की गईं थीं। हिंदुस्तान टाइम्स के सजग संवाददाता दुर्गादास ने अपनी सजगता का परिचय देते हुए वो पर्चा वहाँ से उड़ा लिया और हिंदुस्तान टाइम्स के साँध्यकालीन विशेष संस्करण में छाप कर सारे देश के सामने रख दिया।
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