आइये बजट में सरकार ने क्या-क्या प्रावधान किए हैं उन पर एक नज़र डालते हैं।
बजट में टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं।
एग्री-इंफ्रा डेवलपमेंट सेस लगेगा।
एमएसपी बढ़ाकर उत्पादन लागत का 1.5 गुना किया गया।
सोना-चांदी पर कस्टम ड्यूटी घटाकर 12.5 फ़ीसद किया गया।
कपास
पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाकर 10 फ़ीसद किया गया- विदेश से आयात किए गए कपड़े
महंगे होंगे. कच्चे रेशम और रेशम सूत पर अब सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) 15
फ़ीसद किया गया।
3 वर्षों की अवधि में 7 टेक्सटाईल पार्क स्थापित किए जाएंगे।
कॉपर पर ड्यूटी घटाकर 2.5 फ़ीसद की गई. स्टील स्कू और प्लास्टिक बिल्डर वेयर पर अब 15 फ़ीसद कस्टम ड्यूटी किया गया।
स्वास्थ्य बजट को बढ़ाकर 2,23,846 करोड़ किया गया।
स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के लिए 1,41,678 करोड़ आवंटित किए जाएंगे.
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 2217 करोड़ का आवंटन होगा.
चुनिंदा लेदर कस्टम ड्यूटी से बाहर रखने का प्रस्ताव है.
सस्ते
मकान के प्रोजेक्ट्स को एक साल की टैक्स छूट- सस्ते मकानों की ख़रीद के
लिए 31 मार्च 2022 तक लिए जाने वाले कर्ज़ पर 1.5 लाख रुपये की अतिरिक्त
कटौती होगी.
75 साल से अधिक उम्र के लोगों को आयकर रिटर्न भरने से छूट होगी.
एनआरआई के टैक्स विवाद अब ऑनलाइन निबटाए जाएंगे.
छोटे करदाताओं के विवाद निपटारे के लिए कमिटी बनाई जाएगी.
मेट्रो के लिए 11 हज़ार करोड़ का प्रावधान किया जाएगा.
रेलवे के लिए रेल योजना 2030 तैयार. रेलवे के लिए रिकॉर्ड 1,10,055 करोड़ का प्रावधान.
डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के 1,500 करोड़ रुपये के वित्तीय प्रोत्साहन का प्रावधान
सड़क परिवहन मंत्रालय के लिए 1,18,101 करोड़ का अतिरिक्त प्रावधान
2021-22 में एक हाइड्रोजन एनर्जी मिशन शुरू करने का प्रस्ताव. इसके तहत ग्रीन पावर स्रोतों से हाइड्रोजन को पैदा किया जा सकेगा।
ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर फंड को 30,000 करोड़ से बढ़ाकर 40,000 करोड़ किया गया.
माइक्रो इरिगेशन फंड को 5,000 करोड़ से बढ़ाकर दोगुना करने का प्रस्ताव।
ऊर्जा
क्षेत्र में एक फ्रेमवर्क तैयार किया जाएगा जिसमें उपभोक्ताओं को एक से
ज़्यादा आपूर्तिकर्ता कंपनी में से चुनने का विकल्प दिया जाएगा।
बीमा अधिनियम 1938 में संशोधन करके बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% करने का प्रावधान।
परियोजनाओं,
कार्यक्रमों, विभागों के लिए प्रदान किए जाने वाले आर्थिक कार्य विभाग के
बजट में 44 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक राशि रखी गई।
केंद्र
शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर राज्य में एक गैस पाइप लाइन परियोजना शुरू की
जाएगी. एक स्वतंत्र गैस ट्रांसपोर्ट सिस्टम ऑपरेटर का गठन किया जाएगा।
2020-21
में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.5% निर्धारित किया गया है. 2021-22 में
राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.8% होने का अनुमान है. 2025-26 तक राजकोषीय घाटा
जीडीपी का 4.5% लाने का लक्ष्य है।
घाटे की फिक्र छोड़कर इस वक्त सरकार को खर्च करना चाहिए, तमाम विद्वानों की यह बात तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मान ली है।
उन्होंने
इतनी हिम्मत दिखाई है कि चालू वित्तवर्ष में न सिर्फ सरकार का घाटा यानी
फिस्कल डेफिसिट साढ़े नौ परसेंट पहुंचने की बात खुलकर कबूल की बल्कि यह भी
बताया कि अभी इस साल ही अस्सी हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज और लेना पड़ेगा। कुल मिलाकर सरकार इस साल 18.48 लाख करोड़ रुपए का कर्ज ले चुकी है. कोरोना काल में यह कोई आश्चर्य भी नहीं है. ऐसी आशंका थी। हालांकि
ज्यादातर विद्वान मान रहे थे और अंदाजा लगा रहे थे कि यह आंकड़ा सात से आठ
परसेंट के बीच रह सकता है. लेकिन संशोधित अनुमान में यह साढ़े नौ परसेंट
तक पहुंच चुका है। अगले साल जब बजट आएगा तब ही शायद पता चले कि बीते साल का घाटा दरअसल रहा कितना.हालांकि
यहां यह साफ करना ज़रूरी है कि वित्तमंत्री ने इस बार घाटे में वो घाटे भी
शामिल करके दिखा दिए हैं जिन्हें अब तक सरकारें छिपाकर रखती थीं या
जिन्हें बैलेंस शीट से बाहर रखा जाता था।
कर्ज़
लेने की एक बड़ी वजह तो साफ है. कोरोना की वजह से आमदनी में आई तेज़
गिरावट. डायरेक्ट और इनडायरेक्ट दोनों ही तरह के टैक्स की वसूली में भारी
गिरावट है। दूसरी
तरफ कोरोना की वजह से सरकार का खर्च कम होने के बजाय बढ़ा ही है. बजट के
बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में निर्मला जी ने कहा भी - "हर कोई मुझे सलाह
दे रहा था कि प्लीज़ खर्च बढ़ाइए. और इसीलिए हमने खर्च किया, खर्च किया और
खर्च किया! ऐसा न होता तो आपका सरकारी घाटा इस जगह तक नहीं पहुंच सकता था."
और इसी तर्ज पर उन्होंने आगे की योजना भी बनाई है और अगले वित्तवर्ष में सरकारी घाटा जीडीपी के 6.8% पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इसके
साथ उन्होंने हौसला बढ़ानेवाला एक एलान यह किया है कि अगले साल कैपिटल
यानी ऐसी चीजों पर साढ़े पांच लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च होगा जिनसे
सरकार के पास संपत्ति बनती है. यानी वो खर्च जो बेकार नहीं जाता, या वो
रकम जो इस साल सिर्फ खर्च हो जाती है आगे उससे कुछ मिलने की उम्मीद नहीं
रहती. सरकार जब ऐसा खर्च बढ़ाती है तो निजी क्षेत्र को भी निवेश बढ़ाने की
प्रेरणा और हिम्मत मिलती है। लेकिन निजी क्षेत्र को, बड़े कारोबारियों को या शेयर बाज़ार के खिलाड़ियों
को बजट में जो चीज़ सबसे ज्यादा पसंद आई वो वही है जिसपर बजट के दिन
वित्तमंत्री की सबसे ज्यादा आलोचना हुई और शायद आगे भी होती रहे।
विनिवेश-
यह
है सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर पौने दो लाख करोड़ रुपए जुटाने
का लक्ष्य और साथ ही दो सरकारी बैंक, एक सरकारी जनरल इंश्योरेंस कंपनी,
अनेक सड़कें, बंदरगाह, एयरपोर्ट, पावरग्रिड कॉर्पोरेशन की बिजली लाइनें,
रेलवे लाइनें और डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बेचकर पैसे जुटाने का एलान. यही
नहीं सरकारी विभागों की खाली पड़ी ज़मीनों को बेचने के लिए एक एसपीवी बनाने
का नया एलान.
विपक्षी पार्टियों और इस फैसले के आलोचकों की जुबान में कहें तो सरकार ने बहुत बड़ी सेल लगाने का फैसला किया है.लेकिन
इसके बाद दो और एलान आए. सरकारी बैंकों में डूबे या डूबने की कगार पर
पहुंचे कर्ज को खरीदकर ठिकाने लगाने के लिए एक सरकारी ऐसेट रीकंस्ट्रक्शन
कंपनी और इसी तरह एक ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी बनाने का फैसला। बैंकिंग
कारोबार के लिए इसका सीधा मतलब हुआ कि अब सरकारी बैंकों की बैलेंस शीट में
जो भी उल्टे सीधे कर्ज चढ़े हुए हैं वो वहां से बाहर होकर इधर आ जाएंगे,
यानी बैंकों के खातों की सफाई हो जाएगी. और उसके बाद इन सरकारी बैंकों में
से कोई दो बैंक बेचने की भी तैयारी है. नाम अभी सामने नहीं आए हैं. लेकिन
अब इन दोनों खबरों के बाद बैंकों का शेयर खरीदना तो फायदे का सौदा हो गया। सोने
पर सुहागा था इंश्योरेंस कंपनियों में विदेशी निवेश की सीमा 49% से बढ़ाकर
74% करने का एलान. अब इंश्योरेंस कंपनियों में तेजी का बहाना मिल गया. इसी
तरह की खबरें सीमेंट और स्टील के लिए भी आ गईं। पिछले
पूरे हफ्ते की गिरावट के बाद बजट से पहले ही सेंसेक्स और निफ्टी में तेज़ी
दिखने लगी थी. लेकिन बजट के बाद तो वो हुआ वो पिछले बाईस साल में नहीं हआ
था. सेंसेक्स में पांच परसेंट और निफ्टी में पौने पांच परसेंट का उछाल. इस
तेज़ी में एक बड़ा हिस्सा इस बात का भी रहा कि सरकार ने कोविड के नाम पर
कोई नया टैक्स, सेस, या सरचार्ज नहीं लगाया।
एक
और मायने में बजट की तारीफ हो सकती है कि वित्तमंत्री ने आसमान से तारे
तोड़ लाने जैसा कोई वादा नहीं किया है. ग्रोथ रेट या फिस्कल डेफिसिट का
आंकड़ा भी ऐसा ही रखा है जो होना संभव दिखता है। लेकिन
अब सवाल यह है कि जितना कहा है उतना भी हो पाएगा क्या? और अगर नहीं हुआ तो
कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है. खासकर सरकारी कंपनियों के शेयर और
बाकी संपत्ति बेचकर पैसा जुटाने के मामले में अभी तक का रिकॉर्ड बहुत
हिम्मत नहीं देता। लेकिन
फिर एक उम्मीद बाकी भी है. प्रधानमंत्री ने बताया ही था कि पिछले बजट से
अब तक पांच मिनी बजट आए.तो आगे फिर ज़रूरत पड़ी तो ऐसा करने से सरकार को
कौन रोक सकता है? -
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