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नागरिकता देने के लिए राजस्थान के तीन कलक्टर अधिकृत

नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत पाक विस्थापितों को नागरिकता दी जाती रही है।  अधिनियम के अंदर 51(ए) से 51(ई) तक में इनकी नागरिकता के संबंध में विस्तार से बताया है। राजस्थान गृह विभाग  के सचिव एनएल मीना बताते हैं कि केंद्र सरकार ने जयपुर, जोधपुर और जैसलमेर के कलक्टरों को नागरिकता देने के लिए अधिकृत किया हुआ हैवह कहते हैं, "हम लगातार ज़िलाधिकारियों को लिखते भी हैं  कि योग्य लोगों को प्रक्रिया अनुसार नागरिकता प्रदान करें। गृह विभाग के अनुसार नवंबर 2009 में अंतिम बार नागरिकता देने के लिए कैंप लगाया गया था। सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा मानते हैं कि दो दशक तक इनको धक्के खिलाए जाते हैं,  जिसके बाद नागरिकता मिलती है और कई तो नागरिकता मिलने से पहले ही दुनिया छोड़ देते हैं। 

पड़ोस से पनाह की गुहार लेकर आए वो पाकिस्तानी हिंदू अभिभूत हैं जिन्हें भारत की नागरिकता मिल गई.
आठ हज़ार लोग कर रहे नागरिकता इंतज़ार=

राजस्थान गृह विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में पाक विस्थापित लोगों की संख्या 22,146 है. अकेले जोधपुर शहर सीमा में 7663 पाकिस्तान से आए विस्थापित लोग रहते हैं.राज्य के गृह विभाग के अनुसार 8043 लोग भारतीय नागरिकता आवेदन के लिए पात्र हैं, अकेले जोधपुर में ही 6309 लोग पात्र हैं.जोधपुर के संभागीय आयुक्त राजेश शर्मा कहते हैं, "इनके कल्याण और नागरिकता के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। जोधपुर में ही छह महीने पहले पाकिस्तान विस्थापित परिवार में 12 सदस्यों के परिवार के 11 लोगों की मौत हो गई थी। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह ज़िले जोधपुर के बाद हम पहुंचे पाकिस्तानी सरहद से सटे और क्षेत्रफल में राजस्थान के सबसे बड़े ज़िले जैसलमेर में.जैसलमेर से क़रीब 5 किलोमीटर दूर कच्चे और उबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए कुछ ऊंचाई पर बबर मगरा में बसी है ओढ़ बस्ती। 

यहां 2015 से 2018 के बीच पाकिस्तान से आए 34 परिवार रहते हैं. शुरूआत में इनका ही बनाया एक मंदिर है. मक़ान के नाम पर यहीं से पत्थर लिए और अपनी क़ारीगरी से ख़ुद ही आशियाना बना लिया.लेकिन इनके बच्चों को स्थानीय स्कूलों में दाख़िला नहीं मिल पाता. 40 साल के चनेसर कहते हैं, "सरकरी स्कूल में दाखिला नहीं मिला. डॉक्यूमेंट्स मांगते हैं लेकिन हमारे पास तो डॉक्यूमेंट हैं ही नहीं. इसलिए सब चार सौ रुपए फीस दे कर प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे हैं। भारतीय पहचान पत्रों के बारे में पूछने पर हंसते हुए कहते हैं, क़रीब तीन साल पहले कुछ लोगों के आधार कार्ड बनवा लिया था. लेकिन किसी काम का नहीं. आधार से फोन की सिम ज़रूर मिल जाती है बस.सुविधा के नाम पर इनके पास पक्के कमरे ज़रूर हैं, क्योंकि यह ख़ुद क़ारीगर और मज़दूर हैं. यहीं से पत्थर लिए और ख़ुद ही बना लिया अपना आशियाना। 


र्पूर्व पार्षद नाथू राम भील 1990 में पाकिस्तान से आए, 2005 में नागरिकता मिली

सभी दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं, कभी मिलती है तो कभी नहीं भी. यह बताते हैं कि बस्ती से आयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के लिए इक्कट्ठा कर सोलह हजार पांच सौ रुपए का चंदा दिया है.रामगढ़ बायपास पर ट्रांसपोर्ट नगर में 1990 में पाक विस्थापितों की भील बस्ती अस्तित्व में आयी. स्थानीय लोगों ने जैसलमेर में पाक विस्थापितों की इसे सबसे बड़ी बस्ती बताया। यहां कच्चे और पक्के मकान भी हैं. बेहद पुरानी बस्ती है और शहर से नज़दीक भी. नगर परिषद ने यहां सामुदायिक भवन भी बनाया हुआ है. यहां के पूर्व पार्षद नाथूराम बताते हैं, "यहां क़रीब आधे लोगों के पास नागरिकता है, लेकिन दस साल पहले से आए लोग अब भी भटक रहे हैं."पाकिस्तान से 1990 में आए नाथूराम भील हैं, उन्हें 2005 में नागरिकता मिली. वे जैसलमेर नगरपालिका के वार्ड 30 के पूर्व पार्षद हैं. उन्होंने बताया, "उसके बाद जो वंचित लोग रह गए हैं, उन्हें कोई भी सुविधा नहीं मिल रही है. बहुत समस्या है."इसी बस्ती के चमपकलाल नागरिकता मिलने के बाद जीवन में आए बदलावों पर बोले, "नागरिकता मिलने के बाद बस यही बदलाव आया है कि हम वोट देते हैं और जीवन में कोई बदलाव नहीं आया."पारंपरिक वेशभूषा पहने 62 साल की गौरी अपने 12 लोगों के परिवार के साथ 12 साल पहले पाकिस्तान से आईं,उनके चेहरे पर झुर्रियां आ चुकी हैं और अब तक नागरिकता नहीं मिल पाने और किसी तरह की सुविधा और पहचान पत्र नहीं होने की परेशानी अलग ज़ाहिर होती है। 

गौरी  बताती है "कोई पहचान पत्र नहीं बना. राशन कार्ड नहीं है. एक कमाने वाला और 42 खाने वाले हैं. नागरिकता भी नहीं दे रहे, मैं बहुत दुखी हूं, वापस जाने को तैयार हूं."क़रीब 50 साल की नसीबा का जन्म पाकिस्तान के रहमियार ख़ान ज़िले में ही हुआ. नौ साल पहले पाकिस्तान से भारत आयीं नसीबा ने बताया कि "तंग होकर आए हैं खुशी से कोई नहीं आता. लेकिन, यहां कोई सुविधा नहीं है। जैसलमेर कलेक्टर आशीष मोदी के अनुसार, पाकिस्तान विस्थापितों के लिए कोई बजट तो नहीं है।  हम नगर परिषद और अन्य संस्थाओं से इनके कल्याण कार्य कराते हैं. पात्र लोगों को नागरिकता देने के लिए समय समय पर कैंप लगाए जाते हैं.अधिकतर सेटलमेंट में रहते लोगों के वीज़ा तक एक्सपायर हो चुके हैं।  कई लोगों के वीज़ा तो दो साल पहले एक्सपायर हो गए हैं। 

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