गराज के गाँव और परिवार में पहले तो जीत की ख़ुशी और लाल क़िले पर खालसा झंडे को लहराने का एक उत्साह दिख रहा था, लेकिन बाद में वो पुलिस कार्रवाई के डर में बदल गया।
अब जुगराज का अता-पता नहीं है और जुगराज के माता-पिता भी गाँव छोड़ कर कहीं चले गए हैं, पुलिस और मीडिया के सवालों का जवाब देने के लिए रह गए हैं जुगराज के दादा-दादी। पंजाब के तरनतारन ज़िले के गाँव का 23 साल का नौजवान जुगराज सिंह वही नौजवान है, जिसने 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल क़िले की प्राचीर पर खालसा झंडा लगा दिया था।
जब जुगराज के दादा से पूछा गया कि वो अपने पोते की हरकत के बारे में क्या सोचते हैं, तो उन्होंने कहा, "बहुत अच्छा लग रहा है ये बाबे दी मेहर है" यानी गुरुओं की मेहरबानी है.26 जनवरी के दिन दिल्ली में हुई किसानों की रैली के दौरान कुछ प्रदर्शनकारी दिल्ली के लाल क़िले में घुस गए थे. उन्होंने वहाँ की प्राचीर पर चढ़ कर वहाँ सिखों का पारंपरिक झंडा 'निशान साहिब' फहरा दिया था। इसके बाद पुलिस जुगराज समेत कई लोगों की तलाश कर रही है. लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद किसान नेताओं ने इसकी आलोचना की और कहा कि रैली में 'कुछ असामाजिक तत्व शामिल हो गए थे.'केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस घटना के बाद कहा, "दिल्ली में जिस तरह से हिंसा हुई उसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है. लाल क़िले पर तिरंगे का अपमान हुआ वो अपमान हिंदुस्तान सहन नहीं करेगा."पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने लाल क़िले पर हुई घटना की निंदा की है और कहा है कि भारत सरकार को इस मामले की जांच कर दोषी को सज़ा देनी चाहिए। हालांकि उन्होंने ये भी कहा है शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान नेताओं को परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
तीन कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने की मांग को लेकर किसान दिल्ली की सीमा पर दो महीने से ज़्यादा समय से आंदोलन कर रहे हैं. 26 जनवरी को किसान संगठनों ने पुलिस से दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की अनुमति मांगी थी। बाद में दिल्ली पुलिस ने एक ख़ास रूट पर ट्रैक्टर परेड की अनुमति दे दी थी। लेकिन 26 जनवरी के दिन प्रदर्शनकारी दिल्ली के कई इलाक़ों में घुस गए और कई जगह दिल्ली पुलिस के साथ उनकी झड़प हुई। इसी क्रम में प्रदर्शनकारी लाल क़िले में भी घुस गए और वहाँ झंडा फहरा दिया. पुलिस को इस मामले में एक्टर दीप सिद्धू की भी तलाश है, जिन पर लोगों को भड़काने का आरोप है। दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कई किसान नेताओं पर भी मामला दर्ज किया है. दिल्ली पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के हमले में क़रीब 400 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं. जबकि एक प्रदर्शकारी की मौत हो गई।
लाल क़िले पर झंडा फहराने को लेकर दुनिया भर के अख़बारों में क्या छपा जानते है कुछ
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी मार्निंग हेराल्ड में छपी ख़बर में कहा गया है कि हज़ारों किसान उस ऐतिहासिक लाल क़िले पर जा पहुंचे, जिसकी प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी साल में एक बार देश को संबोधित करते हैं।
पंजाब के 55 वर्षीय किसान सुखदेव सिंह के हवाले से कहा गया है, "मोदी अब हमें सुनेंगे, उन्हें अब हमें सुनना होगा.'' सुखदेव सिंह उन सैकड़ों किसानों में से एक थे जो ट्रैक्टर परेड के तय रास्ते से हटकर अलग रास्ते पर चल पड़े थे. इनमें से कुछ लोग घोड़ों पर भी सवार थे।
अख़बार ने दिल्ली के एक थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउँडेशन के विश्लेषक अंबर कुमार घोष के हवाले से लिखा है, "किसान संगठनों की पकड़ बड़ी मज़बूत है. उनके पास अपने जनसमर्थकों को सक्रिय करने के लिए संसाधन हैं और वे लंबे समय तक विरोध-प्रदर्शन कर सकते हैं. किसान संगठन अपने विरोध को केंद्रित रखने में काफी सफल रहे हैं। भारत की 1.3 अरब आबादी में लगभग आधी आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है और एक अनुमान के मुताबिक, करीब 15 करोड़ किसान इस समय सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। अख़बार ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का बयान याद दिलाया है जिसमें उन्होंने कहा था कि 'किसान अपनी ट्रैक्टर रैली के लिए 26 जनवरी के अलावा कोई दूसरा दिन चुन सकते थे.। 2-अलजज़ीरा ने अपनी खबर की शुरुआत कुछ इस तरह की है- "भारत के हज़ारों किसानों ने नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए राजधानी में मुग़ल काल की इमारत लाल क़िले के परिसर पर एक तरह से धावा बोल दिया, हिंसक विरोध प्रदर्शनों में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई। गणतंत्र दिवस की परेड के मद्देनज़र किए गए व्यापक सुरक्षा इंतज़ामों को ठेंगा दिखाते हुए प्रदर्शनकारी लाल क़िले में दाख़िल हुए, जहां सिख किसानों ने एक धार्मिक ध्वज भी लगाया।
समाचार में इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया गया है कि ये वही लाल क़िला है जहां भारत के प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त को मनाए जाने वाले स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा फहराते हैं। समाचार के साथ प्रकाशित एक तस्वीर में दिखाया गया है कि सड़क पर एक शव है, जिसे तिरंगे से ढका गया है और उसके आसपास प्रदर्शनकारी बैठे हुए हैं, साथ ही एक पोस्टर का ज़िक्र किया गया है जिसमें लिखा है,हम पीछे नहीं हटेंगे, हम जीतेंगे या मरेंगे। ख़बर में 52 वर्षीय किसान वीरेंद्र भीरसिंह के हवाले से लिखा गया है, "पुलिस ने हमें रोकने की भरपूर कोशिश की, लेकिन रोक नहीं पाई." इसी तरह 73 साल के किसान गुरबचन सिंह के हवाले से लिखा गया है, "उन्होंने जो क़ानून बनाए हैं, हम उन्हें हटाकर रहेंगे।
'लाल क़िले पर खालिस्तान का झंडा'
पाकिस्तान के अखबार डान की खबर में कहा गया है कि ऐतिहासिक स्मारक लाल क़िले की एक मीनार पर कुछ प्रदर्शनकारियों ने खालिस्तान का झंडा लगा दिया। ख़बर में कहा गया है कि "कृषि सुधारों का विरोध कर रहे हज़ारों किसान मंगलवार को बैरिकेड्ट हटाकर ऐतिहासिक लाल क़िले के परिसर में घुसे और वहां अपने झंडे लगा दिए।
ख़बर में कहा गया है कि निजी ख़रीदारों की मदद करने वाले कृषि क़ानूनों से नाराज़ किसान दिल्ली के बाहर बीते दो महीने से डेरा डाले हुए हैं, जो साल 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इस ख़बर के साथ डॉन ने कई तस्वीरें लगाई हैं जिनमें दिखाया गया है कि प्रदर्शनकारी रस्सी के सहारे लाल क़िले की मीनार पर चढ़कर झंडे लगा रहे हैं जहां एक प्रदर्शनकारी के हाथ में तलवार भी है। कुछ तस्वीरों में किसानों को बैरिकेड्स हटाते दिखाया गया है जहां पुलिस उन पर आंसू गैस के गोले दाग़ रही है।
हमारे पूर्वजों ने इस क़िले पर कई बार चढ़ाई की है'
गार्डियन के मुताबिक सिख धर्म का झंडा 'निशान साहिब' फहराने वाले पंजाब के किसान दिलजेंदर सिंह का कहना था कि हम बीते छह महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. अतीत में हमारे पूर्वजों ने इस क़िले पर कई बार चढ़ाई की है. ये संदेश है सरकार के लिए कि अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम ऐसा दोबारा कर सकते हैं। गार्डियन के मुताबिक, गुरदासपुर से आए 50 वर्षीय किसान जसपाल सिंह का कहना था कि प्रदर्शनकारी किसानों को कोई डिगा नहीं सकता, इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि मोदी सरकार कितना ज़ोर लगाती है, हम घुटने नहीं टेकने वाले. सरकार हिंसा कराने के लिए प्रदर्शनकारियों के बीच अपने लोगों को भेजकर किसानों को बदनाम करने की कोशिश कर रही है. लेकिन हम इस आंदोलन को शांतिपूर्वक आगे बढ़ाएंगे। किसानों का कहना है कि उनकी हालत को दशकों से नज़रअंदाज़ किया गया है और जो बदलाव किया गया है, उसका मकसद खेती-किसानी में निजी निवेश को लाना है, इससे किसान बड़े कार्पोरेशंस की दया पर निर्भर हो जाएंगे। गार्डियन ने इस ख़बर में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी ज़िक्र किया है, जो पहले किसानों के आंदोलन का समर्थन कर रहे थे. लेकिन लाल क़िले की घटना के बाद उन्होंने किसानों से दिल्ली खाली करने का आग्रह किया है।
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