मणिपुर पुलिस ने स्थानीय न्यूज़ पोर्टल के जिन दो संपादकों को रविवार की सुबह हिरासत में लिया था,उन्हें सोमवार की दोपहर क़रीब साढ़े तीन बजे ज़मानत पर छोड़ दिया गया था ।
इस दौरान दोनों पत्रकारों ने पुलिस को लिखित में दिया है कि वे ऐसी ग़लती दोबारा नहीं करेंगे।
दरअसल पुलिस ने इन दोनों पत्रकारों को राज्य के विद्रोही आंदोलन से जुड़े एक लेख के प्रकाशन को लेकर पकड़ा था। पुलिस हिरासत में रहे पत्रकार पाओजेल चाओबा ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल 'द फ्रंटियरमणिपुर' के कार्यकारी संपादक हैं। वहीं धीरेन सदोकपम पोर्टल के संपादक है।
पुलिसके मुताबिक यूएपीए की धाराएं नहीं लगाईं
सोमवार सुबह इंडियन एक्सप्रेस समेत कई प्रमुख मीडिया में प्रकाशित हुई खबरों मे पुलिस द्वारा दोनों पत्रकारों पर इस मामले को लेकर 'अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट' यानी यूएपीए की धारा 39 (आतंकवादी संगठन का समर्थन) और राजद्रोह की धारा 124-ए लगाने की बात सामने आई थी.इसके साथ ही दोनों पत्रकारों पर आपराधिक साज़िश के लिए 120 बी और राज्य के ख़िलाफ़ अपराध को प्रेरित करने के लिए धारा 505 बी का उपयोग करने की बात भी कही जा रही थी लेकिन अब पुलिस ने अपनी एफ़आईआर में ऐसी कोई भी धारा नहीं लगाने की बात कही है।
इस मामले को देख रहे इम्फ़ाल वेस्ट के पुलिस अधीक्षक के. मेघाचंद्र सिंह ने एक मीडिया चैनल से कहा, "हमने एक ग़लत लेख प्रकाशित करने के मामले में दो नों पत्रकारों को हिरासत में लिया था और वेरिफ़ाइड किया है. लेकिन अब दोनों को ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है. इन पत्रकारों का 'द फ्रंटियर मणिपुर' नाम से एक फ़ेसबुक वेब पेज है जो अभी तक पंजीकृत नहीं है और न ही इसका यहां कोई ऑफ़िस है. इन लोगों ने किसी अज्ञात व्यक्ति से व्हाट्सऐप पर प्राप्त एक आर्टिकल को अपने वेब पोर्टल पर योगदानकर्ता के किसी भी प्रमाणीकरण के बिना प्रकाशित कर दिया."उस लेख में मणिपुर के विद्रोही संगठन से जुड़ी कई सारी ग़लत जानकारियाँ थीं. लेख में ऐसा कहा गया कि मणिपुर में विद्रोही आंदोलन भयावह हो रहा है और इस तरह से लोगों में एक ग़लत संदेश गया. क्योंकि ऐसे बहुत से विद्रोही हैं जो मुख्यधारा में लौटे हैं। लेकिन बाद में राज्य के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने सरकार से इस मामले में कुछ सहानुभूति दिखाने की अपील की. चूंकि ऐसी ग़लती पहली दफ़ा हुई है और सभी बातों पर दिए गए क्लेरिफ़िकेशन को ध्यान में रखते हुए उन्हें रिहा किया गया है."
एक सवाल का जवाब देते हुए एसपी सिंह ने कहा, "हमने दोनों को बॉन्ड पर रिहा किया है और इस मामले में जो धाराएं पहले लगाने की सोच रहे थे वो अब नहीं लगाई गई हैं. हमने इस मामले में उनके इरादों को ग़लत नहीं पाया है क्योंकि दोनों पत्रकारों ने वायदा किया है कि वे फिर से इस तरह की भूल नहीं करेंगे। हालांकि हमने एक एफ़आईआर ज़रूर दर्ज की है."
मुख्यमंत्री से पत्रकारों ने करी थी मुलाक़ात अपनी रिहाई को लेकर दोनों पत्रकारों ने ऐसा फिर से नहीं करने को लेकर एसपी को लिखित में एक पत्र दिया है। इसके अलावा ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह से भी मुलाक़ात की। इस मामले में दोनों पत्रकारों की तरफ़ से कोर्ट पहुंचे वकील चोंगथम विक्टर पुलिस की रिहाई करने की इस प्रक्रिया से आश्चर्यचकित थे
उन्होंने मीडिया से कहा, "पुलिस पहले राजद्रोह का मामला दर्ज करने वाली थी और मैं यहां उनका कोर्ट में इंतज़ार करता रहा. अब पता चला कि पुलिस स्टेशन से ही उन्हें ज़मानत पर रिहा कर दिया गया है। 24 घंटे से ज़्यादा हिरासत में रखने के बाद क़ानून के अनुसार उन लोगों को कोर्ट से रिहा होना चाहिए था। पत्रकारों के संगठन ने इस मामले में मुख्यमंत्री से भी मुलाक़ात की है."क्या इस लेख को प्रकाशित कर इन लोगों ने बहुत बड़ी ग़लती की है? इस सवाल का जवाब देते हुए वकील विक्टर कहते हैं, "यह लेख इन लोगों के प्रकाशित करने से पहले यहां के दो अख़बारों में छप चुका है। यह पिछले साल अक्टूबर में छपा था और इस जनवरी में भी प्रकाशित हुआ है. लेकिन जब 'द फ्रंटियर मणिपुर' के पत्रकारों ने इसे छापा तो उन लोगों को पकड़ लिया गया."मणिपुर में पत्रकारों को पकड़ने की घटना पहली बार नहीं हुई है, ऐसा पहले कई बार हो चुका है। ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के लोगों ने ही यह सबकुछ किया है. जब पहले दो अख़बारों ने इस लेख को प्रकाशित किया था तब सब लोग चुप थे लेकिन अब इन दोनों को पकड़ लिया। एक बेतरतीब रिवोल्यूशनरी यात्रा' नामक यह लेख एम जोय लुवांग के नाम से 8 जनवरी को प्रकाशित हुआ था जिसके बाद मणिपुर पुलिस ने मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए लेखक और संपादक के नाम पर एक मामला दर्ज किया था।
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