मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक टाटा समूह आज एयर इंडिया को खरीदने की इच्छा जताने का प्रस्ताव दाखिल करने वाला है.ऐसी ख़बरें हैं कि टाटा समूह भारी घाटे से जूझ रही एयर इंडिया को खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहा है।
जाने-माने उद्योगपति जेआरडी टाटा ने भारत की आज़ादी से पहले ही 1932 में टाटा एयरलाइंस की स्थापना की थी।
टाटा एयरलाइंस के लिए साल 1933 पहला वित्त वर्ष रहा. ब्रितानी शाही 'रॉयल एयर फोर्स' के पायलट होमी भरूचा टाटा एयरलाइंस के पहले पायलट थे जबकि जेआरडी टाटा और विंसेंट दूसरे और तीसरे पायलट थे।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब उड़ान सेवाओं को बहाल किया गया तब 29 जुलाई 1946 को टाटा एयरलाइंस 'पब्लिक लिमिटेड' कंपनी बन गयी और उसका नाम बदलकर 'एयर इंडिया लिमिटेड' रखा गया. आज़ादी के बाद यानी 1947 में टाटा एयरलाइंस की 49 फ़ीसदी भागीदारी सरकार ने ले ली थी. 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण हो गया था।
न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि आज टाटा समूह एयर इंडिया के लिए 'एक्सप्रेशन ऑफ़ इंटरेस्ट' दाखिल करेगा.आज (14 दिसंबर) एयर इंडिया के लिए एक्सप्रेशन ऑफ़ इंटरेस्ट दाखिल करने की आख़िरी तारीख है। टाटा समूह भारत में पहले से ही दो एयरलाइन संचालित कर रहा है. इनमें से एक सिंगापुर एयरलाइन्स के साथ और दूसरा एयर एशिया के साथ संयुक्त उद्यम है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने फरवरी में एक रिपोर्ट प्रकाशित थी कि सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर टाटा ग्रुप, एयर इंडिया के लिए बोली लगाने की योजना बना रहा है।
अख़बार ने सूत्रों के हवाले से लिखा था कि टाटा समूह एयर इंडिया को खरीदने के अपने प्रस्ताव को अंतिम रूप देने के काफ़ी करीब है और वो सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर कंपनी के अधिग्रहण को अंजाम देने की तैयारियां शुरू कर चुका है। भारत सरकार पहले ही सैद्धान्तिक रूप से नेशनल कैरियर एयर इंडिया की 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने के फ़ैसले का ऐलान कर चुकी है। सरकार पहले भी एयर इंडिया को बेचने की कोशिश कर चुकी है, लेकिन इसके लिए खरीदार नहीं मिले थे।
सरकार ने इस बार एयर इंडिया को बेचने की शर्तों में काफ़ी बदलाव किए हैं. मौजूदा वक़्त में एयरलाइन्स पर लगभग 60 हज़ार करोड़ रूपये का कर्ज़ है लेकिन अधिग्रहण के बाद खरीदार को लगभग 23,286 करोड़ रुपये ही चुकाने होंगे। बाकी का कर्ज़ ख़ुद सरकार उठाएगी. कर्ज़ को कम करने के लिए सरकार ने ऋण विशेष इकाई का गठन किया है. साथ ही अब सरकार ने 76 फ़ीसदी के बजाय पूरे 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी बेचने का प्रस्ताव भी सामने रखा है। इसके अलावा सरकार ने कुछ और शर्तों में भी ढील दी है, ताकि इस बार उसे ख़रीदार मिल सके. सरकार ने कहा है कि अगर किसी संभावित खरीदार को मौजूदा शर्तों को लेकर कोई दिक्कत है तो वो इस बारे में बात करने को तैयार है।
एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक और 'डिस्सेंट ऑफ़ एयर इंडिया' किताब के लेखक जितेंद्र भार्गव कहते हैं कि टाटा ग्रुप एयरलाइन का संभावित खरीदार हो सकता है.केंद्र सरकार की शर्तों के मुताबिक़ एयर एंडिया के खरीदार की नेट वर्थ कम से कम 3,500 करोड़ होनी अनिवार्य है. जितेंद्र भार्गव मानते हैं कि टाटा की स्थिति एयर इंडिया को खरीदने के लिए अनुकूल हैं। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के अनुसार टाटा सन्स प्राइवेट लिमिटेड की नेट वर्थ 6.5 ट्रिलियन रुपये है। मौजूदा वक़्त में टाटा सन्स प्राइवेट लिमिटेड, सिंगापुर एयरलाइंस के साथ मिलकर विस्तारा एयरलाइन चलाते हैं. इस संयुक्त उपक्रम (वेंचर) में टाटा की 51 फ़ीसदी हिस्सेदारी है और सिंगापुर एयरलाइंस की 49 फ़ीसदी। इसके अलावा एयर एशिया इंडिया में भी टाटा सन्स की 51 फीसदी हिस्सेदारी है. एयरलाइन की बाकी 49 फीसदी हिस्सेदारी मलेशियाई कारोबारी टोनी फ़र्नांडिज़ के पास है।
अगर टाटा एयर इंडिया का अधिग्रहण करती है तो छूट के बाद भी उसे कर्ज़ के करीब साढ़े 23 हजार करोड़ चुकाने ही होंगे. इसके साथ ही यात्रियों की लगातार कम होती संख्या से निबटने के बारे में भी कोई मज़बूत रणनीति बनानी होगी। गिरते रुपए ने एविएशन सेक्टर में 'ऑपरेशनल लॉस' को और बढ़ा दिया है. अब विमान का ईंधन ख़रीदने में ज़्यादा ख़र्च करना पड़ता है, इसके लिए भी तैयार रहना होगा।
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