शेरिंग दोरजे अभी 83 साल के हैं, इस उम्र में उन्हें चाहे कुछ और याद ना हो लेकिन साल 1998 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ अपनी मुलाक़ात बहुत अच्छी तरह याद है।
हिमाचल प्रदेश के लाहौल में रहने वाले विद्वान और इतिहासकार दोरजे उस तीन सदस्यों वाले समूह का हिस्सा थे जो एक विशेष माँग लेकर पूर्व प्रधानमंत्री से मिलने गए थे। कुल्लू में बैठे दोरजे उस दिन को याद करते हुए फ़ोन पर ही बताते हैं कि कैसे उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री से एक ऐसी सुरंग बनाने की माँग की थी जो हर मौसम में चालू रहे। उस दिन को याद करते हुए वे कहते हैं। हमारी मुख्य माँग इस सुरंग को लेकर थी। हमने लद्दाख के बारे में भी ज़िक्र किया था जो इस सुरंग से जुड़ेगा और दूसरी माँग बेशक लाहौल को लेकर थी जो साल के छह महीने पूरी तरह के कट जाता है. हम इस सुरंग के बन जाने से इस समस्या का समाधान चाहते थे। हिमाचल प्रदेश की मनमोहक लाहौल घाटी लगभग हर साल पाँच से छह महीने देश-दुनिया से बिल्कुल कट जाती है क्योंकि रोहतांग दर्रा बर्फ़बारी के कारण बंद हो जाता है। यह सभी को पता है कि अटल बिहारी वाजपेयी को मनाली से कितना प्रेम था। साल 2000 में उन्होंने एक प्रोजेक्ट की घोषणा की थी। यह प्रोजेक्ट मनाली और लेह को जोड़ने का था। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2019 में इस सुरंग का नाम भी उन्हीं के नाम पर रख दिया. पहले तो इस सुरंग को रोहतांग सुरंग के नाम से जाना जाता था।
'वाजपेयी से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया'-
दोरजे कहते हैं कि वे तीन लोग तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिलने गए थे और उनमें से एक स्वर्गीय ताशी दावा थे। वो आरएसएस की एक ट्रेनिंग के दौरान वाजपेयी के दोस्त बन गए थे। दोरजे ने न्यूज़ को बताया। हमने ताशी दावा को तत्कालीन प्रधानमंत्री से मिलने जाने वाले दल का नेतृत्व करने के लिए राज़ी किया. हम एक सोसायटी 'लाहौल संघी जनजाति सेवा कमिटी' के माध्यम से अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने दिल्ली पहुँचे. उनकी प्रतिक्रिया बेहद सकारात्मक थी। वे बताते हैं, "हम उनसे पहली बार साल 1998 में मिले थे। उन्होंने कहा था कि यह सुरंग महत्वपूर्ण है और इसे बहुत पहले ही बन जाना चाहिए था. साल 1999 में जब हम दोबारा मिले तो उस समय तक कारगिल युद्ध समाप्त हो चुका था. उन्हें एहसास हो गया था कि हमने अपनी पहली बैठक में लद्दाख का ज़िक्र क्यों किया था. वो इस बात से खुश भी थे और हैरान भी कि हमें कारगिल के बारे में कैसे पता था. उसके तुरंत बाद उन्होंने इस सुरंग के लिए हाँ कह दी थी।
अटल सुरंग को दुनिया की सबसे लंबी राजमार्ग सुरंग के रूप में जाना जाता है। सीमा सड़क संगठन का कहना है कि नौ किलोमीटर लंबी सड़क पूरे साल मनाली और लेह को जोड़े रखेगी. इससे मनाली और लेह के बीच की दूरी 46 किलोमीटर कम हो जाएगी, साथ ही सफ़र के घंटे भी। लेह के स्थानीय लोग जो हालिया भारत-चीन गतिरोध के बाद से युद्ध के साए में जी रहे हैं, वे इस सुरंग को लेकर बेहद खुश हैं।
बरालाचा दर्रा मुख्य चुनौती-
लेह के एक डीलर सीएस राठौड़ कहते हैं, मुझे पूरा भरोसा है कि इस सुरंग के खुल जाने से लद्दाख का भविष्य उज्जवल होगा. दोनों ओर से मिला दें तो क़रीब 96 किलोमीटर की दूरी घट जाएगी। इससे ट्रांसपोर्ट का ख़र्चा भी कम होगा. पहले एक ट्रक को लेह तक जाने में तीन-चार दिन का समय लगता था लेकिन अब इस सुरंग के बन जाने से लेह पहुंचने में दो दिन ही लगेंगे। वहीं, दूसरी तरफ़ लेह में एक डीलर स्टेंज़िन फंटोक इस सुरंग के फ़ायदे को लेकर संशय जताते हैं। उन्होंने कहा, अभी ये कहना मुश्किल है कि इससे हमें क्या फ़ायदा होगा क्योंकि मौसम तो अब चला गया. शायद अगले साल जब सीज़न शुरू होगा तब बता सकेंगे कि इससे हमें कैसे फ़ायदा होगा। अगर ये सुरंग शुरू हो भी जाये तो ट्रकों के लिए बरालाचा दर्रा मुख्य चुनौती होगी. पिछले साल हमारे ट्रक बरालाचा पर अटक गए थे और कई बार तो पाँच-छह महीने के लिए ट्रकों को वहां छोड़ देना पड़ता है जिससे बहुत नुक़सान होता है।
'एक सुरंग काफ़ी नहीं'
लेह में वो अकेले नहीं हैं जिन्हें लगता है कि अटल सुरंग लेह-लद्दाख की परेशानियों को दूर करने के लिए काफ़ी नहीं होगी। लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, लेह के पूर्व मुख्य कार्यकारी काउंसलर रिगज़िन स्पालबर ने कहा, "लद्दाख के लोगों को अटल सुरंग से कोई ख़ास फ़ायदा नहीं होगा. हाँ, गर्मियों में कुछ दूरी कम हो जाएगी जब सड़क खुली होगी लेकिन सर्दियों में इसका कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि बरालाचा, लाचुंगला, तांगलंगला, सरचु पास बर्फबारी की वजह से पूरी सर्दी बंद रहते हैं। बारालाचा, लाचुंगला, तांगलांगला पास लद्दाख के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. इनके ज़रिए लद्दाख अटल सुरंग से जुड़ा है और उनके बाद मनाली से। जब ये पास सर्दियों में बर्फबारी की वजह से बंद होंगे, तब लद्दाख के लोग अटल सुरंग तक नहीं जा पायेंगे। भारतीय सेना ने भी कई बार कहा है कि हर मौसम के अनुरूप एक सुरंग बनाने की ज़रूरत है जो लद्दाख को बाकी देश से जोड़ सके। रोज़गार और नौकरियों की उम्मीदरिटायर्ड कर्नल लोबज़ंग नीमा ने एक न्यूज़ चैनल को बताया कि "रोहतांग पास एक ख़तरनाक पास माना जाता है और इस सुरंग के बनने से कई दुर्घटनाओं से बचाया जा सकता है, लेकिन देखा जाये तो लद्दाख के लिए रोहतांग ला से ज़्यादा तांगलंगला, लाचुंगला और बरालाचा मुश्किल भरे हैं। ख़तरनाक सड़कों, ऊंचे पास, बर्फ़बारी और हिमस्खलन की वजह से होने वाला जान-माल का नुक़सान इस सुरंग के बनने से कम हो सकता है।
अटल सुरंग का दक्षिणी प्रवेश-मार्ग मनाली से 25 किलोमीटर दूर 3,060 मीटर की ऊंचाई पर है और उत्तरी प्रवेश-मार्ग लाहौल घाटी में तेलींग गाँव के पास 3,071 मीटर ऊंचाई पर है। लाहौल के लोगों का मानना है कि सुरंग के बनने से यहाँ पर्यटक ज़्यादा आयेंगे जिससे नई नौकरियाँ और काम के अवसर पैदा होंगे। नए होटल भी आएंगे जिससे नौकरियाँ पैदा होंगी और लोगों का पलायन रुकेगा। ट्राइबल टुडे के संपादक शाम चंद आज़ाद ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि कनेक्टिविटी के अलावा अटल सुरंग ने लाहौल-स्पीति में पर्यटन बढ़ेगा जिससे रोज़गार के मौक़े भी बढ़ेंगे. लाहौल के लोगों के लिए ये 10 महीने की राहत है. इसे हम हर मौसम की सुरंग तो नहीं कह सकते क्योंकि जनवरी और फरवरी में बहुत बर्फ़ गिरती है. इस बात की संभावना है कि इन दो महीने ये बंद ही रहे। (संवाद सूत्र)
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