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सहारा रेगिस्तान में लाइब्रेरी वाला शहर

मौरितानिया के विशाल रेत के टीलों के छोर पर बसा चिंगुएटी शहर पिछले 1,200 साल से मुसाफ़िरों को पनाह दे रहा है.


सहारा रेगिस्तान के बीच इस नखलिस्तान शहर की स्थापना 8वीं सदी में हुई थी। जियारत के लिए मक्का जाने वाले तीर्थयात्रियों का कारवां यहां रुकता था। लाल पत्थरों वाला यह नखलिस्तान धीरे-धीरे पश्चिम अफ्रीका में विज्ञान, धर्म और गणित के सबसे बड़े केंद्रों में से एक बन गया। यहां क़ानून, चिकित्सा, और खगोलशास्त्र के भी विद्वान रहते थे. तीर्थयात्री और विद्वान यहां आते-जाते रहे। 


पांडुलिपियों का संरक्षण


चिंगुएटी में धार्मिक पुस्तकों, वैज्ञानिक अध्ययनों और ऐतिहासिक महत्व की पांडुलिपियां तैयार होती रहीं। 13वीं सदी से लेकर 17वीं सदी तक चिंगुएटी में 30 पुस्तकालय थे जहां पांडुलिपियों को सहेजकर रखा जाता था। आज उनमें से पांच पुस्तकालय मौजूद हैं। 


पुस्तकालयों के संरक्षक मध्यकालीन क़ुरान की 1,000 से ज़्यादा पांडुलिपियों को सहारा की रेत से बचाकर रखते हैं.सेफ़ अल-इस्लाम ऐसे ही एक पुस्तकालय के संरक्षक हैं। वह कहते हैं, "हमारे पुरखों ने विभिन्न विषयों, जैसे- धर्म, खगोलशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र पर किताबें और पांडुलिपियां लिखीं। शहर में लाल पत्थर से बनी इमारतों की दीवारें चौड़ी हैं. उनके बीच लकड़ी के छोटे-छोटे दरवाजे़ हैं। अंदर जाने पर हजारों पांडुलिपियां मिलती हैं, जिनको लकड़ी और गत्ते के बक्सों में संभालकर रखा गया है। सेफ़ अल-इस्लाम पांडुलिपियों को छूने से पहले हाथों में दस्ताने पहनते हैं, फिर खगोलशास्त्र की एक पांडुलिपि निकालते हैं। यह एक वैज्ञानिक किताब है. देखिए इसमें कर्क और तुला नक्षत्रों के बारे में लिखा है। 


कोपरनिकस और गैलीलियो से बहुत पहले मुसलमान जानते थे कि धरती गोल है और घूम रही है।


मर्दों का अधिकार


सेफ़ अल-इस्लाम बचपन से ही पुस्तकालय संरक्षक बनने का सपना देखते थे. वह दूसरे संरक्षकों और सैलानियों की मदद करते थे.। वह कहते हैं, "मेरा नसीब अच्छा था कि मैं मर्द हूं. कोई महिला पुस्तकालय की संरक्षक नहीं बन सकती। कई महिलाएं इसके क़ाबिल हैं जो यह काम अच्छे से कर सकती हैं लेकिन जब उनकी शादी होती है तो उनके पति समूचे संग्रह के मालिक हो जाते हैं. इस तरह पैतृक संपत्ति दूसरे परिवार के पास चली जाती है। सहारा रेगिस्तान का विस्तार हो रहा है. जैसे-जैसे यह दक्षिण की ओर बढ़ रहा है, चिंगुएटी की इमारतों की सपाट छतों पर भी रेत जमा होने लगी है। सेफ़ अल-इस्लाम कहते हैं, 1930 से 1995 के बीच कई परिवार बड़े शहरों की ओर चले गए क्योंकि यहां उनकी ऊंटों के लिए घास नहीं बची थी और कोई नौकरी भी नहीं थी। पलायन करने वाले परिवार अपनी पांडुलिपियां भी साथ ले गए. चिंगुएटी में अब 30 में से सिर्फ़ 12 पुस्तकालय बचे हैं और उनमें से भी 5 या 6 ही खुलते हैं। 


जलवायु में आए बदलावों के कारण बादल फटने और शहर में सैलाब आने की घटनाएं बढ़ गई हैं. इससे भी पांडुलिपियां नष्ट हो रही हैं। ऐसे में इस इस्लामिक ज्ञान-विज्ञान के अनमोल खजाने का भविष्य अधर में लटका है। 


सेफ़ अल-इस्लाम कहते हैं, "कुछ किताबें एक घर की ऊपरी मंजिल पर थीं. बारिश हुई तो वे बर्बाद हो गईं. कुछ पांडुलिपियों को बकरियां खा गईं. कुछ किताबों को बच्चों ने खेल-खेल में फाड़ दिया। 


आमदनी का ज़रिया नहीं


चिंगुएटी में किसी पुस्तकालय का मालिक होना सामाजिक प्रतिष्ठा की बात होती है. इसे आमदनी का जरिया नहीं समझा जाता। इंस्टीट्यूट ऑफ़ रिसर्च एंड साइंस के बेचिर अल मोहम्मद कहते हैं, "पांडुलिपियों के ज़्यादातर मालिकों को पता नहीं है कि उनका क्या करना है. उनके बाप-दादा को यह बात मालूम थी. पांडुलिपियों के साथ यही सबसे बड़ी समस्या है। पुस्तकालयों के मालिकों को इतना पता है कि उनके पास कोई पैतृक खजाना है। 


यकीनन वे सही हैं उनके पास खजाना है लेकिन वे नहीं जानते कि उस खजाने में क्या-क्या है. हम उनको बताने की कोशिश कर रहे हैं कि ये चीजें कितनी अहमियत रखती हैं. इस खजाने को रखना ही काफी नहीं है, हवा-पानी और सीलन से उनको बचाना भी ज़रूरी है। चिंगुएटी के अच्छे दिन नहीं रहे. इस शहर में अब सैलानी कम आते हैं. लोग किताबों को भूलने लगे हैं। 


सेफ़ अल-इस्लाम कुछ बच्चों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। वह कहते हैं, "उनमें से दो या तीन काबिल हैं. लेकिन मैं यकीन से नहीं कह सकता कि वे पुस्तकालय की देख-रेख कर पाएंगे या नहीं. मुझे लगता है कि नई पीढ़ी उत्साहित नहीं है। 


संरक्षण के पैसे नहीं


बेचिर अल मोहम्मद का कहना है कि कुछ लोगों के पास बड़े-बड़े पुस्तकालय हैं लेकिन उनको संरक्षित रखने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. यह बड़ी समस्या है। 


मैं दो पुस्तकालयों को जानता हूं जिनके मालिक सऊदी अरब में रहते हैं. हमें पांडुलिपियों को अच्छी स्थिति में संरक्षित करके रखने की ज़रूरत है. उनको चिंगुएटी की रेत में यूं ही लावारिस नहीं छोड़ना है. हमें यह करना ही है. हमें हार नहीं माननी है। संरक्षणवादियों ने पांडुलिपियों के संग्रह को बचाने के लिए उनको चिंगुएटी से निकालने की कोशिश की लेकिन शहर के लोगों को लगता है कि किताबें उनके पुरखों की धरोहर हैं। 


 


 


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