बिखरी हुई रोशनी जैसे-जैसे सूरज की रोशनी अलग-अलग हवा की परतों से गुज़रती है, इन परतों में अलग-अलग घनत्व की गैसें होती हैं. इनसे गुज़रते हुए रोशनी दिशा बदलती है और बँट भी जाती है। वातावरण में कुछ कण भी होते हैं, जो विभाजित रोशनी में उछाल लाते हैं या उसे प्रतिबिंबित करते हैं।जब सूरज डूबता या उगता है, इसकी किरणें वातावरण की सबसे ऊपर की परत से एक निश्चित कोण से टकराती हैं और यहीं पर ये 'जादू' शुरू होता है। जब सूरज की किरणें इस ऊपरी परत से होकर गुज़रती हैं, तो नीली वेवलेंथ बँट जाती है और अवशोषित होने की वजह से प्रतिबिंबित होने लगती है. ब्लूमर कहते हैं, "जब क्षितिज पर सूर्य का ताप कम होता है, तो प्रकाश की नीले और हरे रंग की तरंगें बिखर जाती हैं। और ऐसे में हमें बची हुईं प्रकाश की नारंगी और लाल तरंगें ही दिखाई देती है। बैंगनी और नीले रंग की किरणें अपनी छोटी वेवलेंथ के कारण ज़्यादा लंबी दूरी तक नहीं जा पातीं और ज़्यादा बिखर जाती हैं। जबकि संतरी और लाल रंग की किरणें लंबी दूरी तय करती हैं. ऐसे में आसमान पर ये ख़ूबसूरत मंज़र बन जाता है।
सूरज लाल लगता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सूरज का रंग बदल गया है. ब्लूमर कहते हैं, ''धूल के बादल, धुंआ और इसी तरह के अन्य तत्व आसमान के रंग पर असर डालते हैं.'' अगर आप भारत, कैलिफॉर्निया, चिली, ऑस्ट्रेलिया या अफ़्रीका के कुछ हिस्सों या लाल रेत वाले इलाक़ों के नज़दीक रहते हैं, तो आपका वातावरण मौसम की स्थिति के आधार पर प्रकाश को प्रतिबिंबित करने वाले कणों से भरा हो सकता है. ब्लूमर कहते हैं, ''ये कुछ ऐसा ही है, जैसा मंगल ग्रह पर होता है. जब लाल रंग की धूल हवा में उड़ती है, तो लगता है कि आसमान लाल-गुलाबी सा हो गया है.'' कई बार रेगिस्तान से दूर रहने वालों को भी अलग-अलग रंगों वाले ऐसे आसमान देखने को मिल सकते हैं. जैसे सहारा रेगिस्तान की रेत वायुमंडल की उच्च परतों में चली जाती है. फिर वहाँ से ये यूरोप, साइबेरिया और यहाँ तक कि अमरीका भी पहुँच जाती है।
लॉकडाउन और प्रकृति से क़रीबी
ऐसा होना बहुत अलग बात नहीं है. प्रकृति में ऐसा होता आ रहा है लेकिन बात ये है कि अब हम इस पर ज़्यादा ध्यान देने लगे हैं।ब्लूमर एक मुस्कुराहट के साथ कहते हैं।लॉकडाउन के इस समय में लोग आसमान पर बहुत ध्यान दे रहे हैं. लोग इस समय दूसरे कामों में व्यस्त नहीं हैं। लॉकडाउन में सिनेमा, थियेटर और पार्टी जैसे मनोरंजन के साधन बंद हैं. लोग घरों में रह रहे हैं और प्रकृति से जुड़ पा रहे हैं।ब्लूमर कहते हैं कि ट्रैफ़िक कम होने से प्रदूषण का स्तर भी कम हो गया है और लोग बाहर ज़्यादा अच्छा महसूस कर रहे हैं।
आसमान का रंग नीला क्यों आसमान का रंग दिन में ज़्यादा नीला क्यों हो जाता है।
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