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भारत में नेपाल के कामगारों को लेकर सवाल, सुप्रीम कोर्ट का नोटिस


भारत में कितने नेपाली प्रवासी लोग काम कर रहे हैं और कितने भारतीय प्रवासी इस वक़्त नेपाल में काम कर रहे हैं?इन दोनों सवालों का सटीक जवाब देना आसान नहीं है. क्योंकि भारत और नेपाल सदियों पुराने रिश्ते में बंधे हैं और ख़ासकर 1950 के शांति और मैत्री संधि के कारण दोनों देशों में बिना किसी रोक-टोक के लोगों का आना जाना होता रहा है.लोगों के आने जाने का कोई भी आँकड़ा मौजूद नहीं है और इसीलिए ऊपर पूछे गए दोनों सवालों का सही जवाब न भारत के पास है और न ही नेपाल के पास। ऐसी परिस्थिति में नेपाल की सरकार के लिए तब मुश्किल खड़ी हो गई, जब 10 जुलाई को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए उससे पूछा कि भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों को वो तमाम सुविधाएँ और सुरक्षा क्यों नहीं दी जाए, जो दूसरे देशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों को मिलती हैं.अदालत ने नेपाल की सरकार को 15 दिनों के अंदर नोटिस का जवाब देने को कहा है।


नेपाल की सरकार ने अपने नागरिकों को दुनिया के 170 देशों में रहने और काम करने की इजाज़त दे रखी है, हाल के वर्षों में नेपाल ने कई देशों से श्रम समझौतों पर दस्तख़त किए हैं। नेपाल ने विदेशी रोज़गार फंड भी बनाया है, जिसके तहत विदेशों में काम कर रहे नेपाली नागरिकों के ज़ख़्मी होने या उनकी मौत होने पर उनके परिजनों को मुआवज़ा दिया जाता है। नेपाली सरकार अपने कामगारों को विदेशी रोज़गार परमिट भी जारी करती है जिसके ज़रिए कोई कामगार 15 लाख नेपाली रुपए तक का बीमा करवा सकता है। लेकिन ये सारे क़ानून और सुविधाएँ नेपाल के उन श्रमिकों पर लागू नहीं होती हैं, जो भारत में आकर काम करते हैं या जो भारतीय नागरिक नेपाल में काम करते हैं। दोनों ही देशों में ऐसे कामगारों की सही जानकारी नहीं है। इससे इस बात की आशंका पैदा हो गई है कि ज़रूरत पड़ने पर इन प्रवासी कामगारों को सुरक्षित प्रवासन या पर्याप्त वित्तीय मुआवज़ा नहीं मिल सकेगा। 


नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वालों में से एक निर्मल कुमार उप्रेती कहते हैं कि भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों के हितों की नेपाली सरकार के ज़रिए की जा रही अनदेखी नेपाल के विदेशी रोज़गार क़ानून का खुला उल्लंघन हैउप्रेती के अनुसार ये नेपाली प्रवासी कामगारों की सुरक्षा के अधिकार का भी उल्लंघन है।  से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "नेपाली प्रवासी मज़दूरों के लिए भारत भी अन्य देशों की तरह एक विदेशी मुल्क है। लेकिन विदेशी मज़दूर होने का कोई भी दस्तावेज़ी सूबत नहीं होने के कारण ये नेपाली नागरिक किसी भी तरह के मुआवज़े या सुविधा से वंचित रहते हैं, जो दूसरे देशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों को मिलता है। 


विदेशों से भेजी गई रक़म


नेपाल के अधिकारियों के अनुसार क़रीब 50 लाख नेपाली लोग विदेशों में काम करते हैं और नेपाल में रह रहे अपने परिवार के ख़र्च के लिए विदेशों से पैसे भेजते हैं। वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान विदेशों में रह रहे नेपाली नागरिकों ने केवल आधिकारिक स्रोतों के ज़रिए आठ अरब 80 लाख अमरीकी डॉलर नेपाल भेजे थे। ये बता पाना मुश्किल है कि इसी दौरान हुंडी और हवाला जैसे अनाधिकारिक चैनलों से कितने पैसे नेपाल आए थे। 


विश्व बैंक के 2018 में किए गए एक आकलन के अनुसार भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों ने एक साल में एक अरब 30 लाख अमरीकी डॉलर से ज़्यादा रक़म नेपाल भेजी थी, जबकि नेपाल में काम कर रहे भारतीय कामगारों ने उसी दौरान क़रीब एक अरब 50 लाख अमरीकी डॉलर भारत भेजा था. इस तरह से देखा जाए तो नेपाल भारत में आने वाले कैश फ़्लो (रेमिटेन्स) का एक बड़ा ज़रिया है। 


अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कितने नेपाली भारत में और कितने भारतीय नेपाल में काम कर रहे हैं। इंटरनेशनल ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ माइग्रेशन (आईओएम) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार क़रीब 30 से 40 लाख नेपाली कामगार भारत में रहते और काम करते हैं।


हालांकि भारतीय अधिकारियों का अनुमान है कि ये संख्या इससे कहीं ज़्यादा है। आईओएम के अनुसार नेपाल में काम कर रहे भारतीयों की संख्या क़रीब 5-7 लाख है। नेपाल के राष्ट्रीय योजना आयोग के पूर्व सदस्य और विदेशों में काम कर रहे नेपाली कामगारों पर गहन अध्ययन करने वाले डॉक्टर गणेश गुरुंग कहते हैं,सीमा खुली हुई है और मज़दूरों को आवागमन की पूरी आज़ादी है, इसलिए सही संख्या बता पाना बहुत मुश्किल है, भारत-नेपाल सीमा पार करने वाले बहुत सारे कामगार सिर्फ़ विशेष मौसम में एक दूसरे के यहाँ आते-जाते हैं। मिसाल के तौर पर तराई-मधेस क्षेत्र में रहने वाले नेपाली मज़दूर फसल के समय पंजाब और हरियाणा जाते हैं और बिहार और उत्तर प्रदेश के कई मज़दूर इसी दौरान नेपाल आते हैं। नेपाल के कई मज़दूर ख़ास मौसम में भारत मज़दूरी करने के लिए जाते हैं। 


प्रवासी मज़दूरों की दयनीय हालत


भारत-नेपाल सीमा पर आवागमन की आज़ादी के जहां कई फ़ायदें हैं वहीं इसके कुछ हानिकारक पहलू भी हैं। इस तरह के असुरक्षित और ग़ैर-पंजीकृत कामगारों की दयनीय स्थिति से अवगत लोग कहते हैं कि असंगठित क्षेत्र में काम करने के कारण उन्हें हमेशा इस बात का ख़तरा रहता है कि वो कभी भी ज़ख़्मी हो सकते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जा सकता है और उनका शोषण हो सकता है, लेकिन इनसे बचने का उनके पास कोई रास्ता नहीं है। 


भारत में रहने और काम करने वाले नेपालियों की मदद करने वाली एक संस्था नेपाली जनसंपर्क समिति एंड मैत्री इंडिया के चेयरमैन बालकृष्ण पांडेय कहते हैं कि नेपाली कामगारों की सुरक्षा के उपायों के बारे में सोचना एक ऐसा मुद्दा है जिसकी दशकों से अनदेखी की गई है। बालकृष्ण पांडेय 17 साल की उम्र में नेपाल से भारत चले गए थे,वो कहते हैं1990 से मैं ये मुद्दा उठा रहा हूं कि नेपाल से भारत आकर काम करने वाले ग़रीब मज़दूरों को किसी तरह के पंजीकरण और सुरक्षा दिए जाने की ज़रूरत है, कई प्रधानमंत्री आए-गए,नेपाल के कई नेता जब भारत आए तो यहाँ प्रवासी मज़दूरों के साथ ठहरे लेकिन जब वो सत्ता में आए तो प्रवासी नेपालियों को भूल गए। पांडेय के अनुसार कोरोना महामारी फैलने के बाद से क़रीब छह लाख नेपाली प्रवासी कामगार भारत से नेपाल चले गए हैं, इनमें मणिपुर में फँसी कुछ नेपाली महिलाएँ भी शामिल हैं जिन्हें भारत से खाड़ी देश तस्करी करके ले जाया जा रहा था, लेकिन उन्हें एक ग़ैर-सरकारी संगठन की मदद से बचा लिया गया। 


आगे का रास्ता क्या है


भारत-नेपाल की 1880 किलोमीटर सीमा के रास्ते सदियों से नेपाल के कामगार भारत आते रहे हैं, नेपाली अधिकारी कहते हैं कि उन्हें नेपाली कामगारों की परेशानियों की जानकारी है, उन्हें ये भी पता है कि नेपाली महिलाओं और बच्चों की तस्करी होती है। नेपाल के श्रम और सामाजिक सुरक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सुमन घिमिरे कहते हैं कि वो और उनके सहयोगी नेपाली प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा के बारे में हमेशा विचार विमर्श करते रहते हैं। वो कहते हैं, कोरोना महामारी के बाद नेपाल के स्थानीय निकायों ने भारत से नेपाल आने वाले सभी लोगों का पंजीकरण शुरू कर दिया है। भारत में काम करने वाले नेपाली प्रवासी मज़दूरों की सुरक्षा में यह पहला क़दम है।  हमें और करने की ज़रूरत है और हम इसको लेकर गंभीर हैं। नेपाल के प्रवासियों की स्थिति में सुधार करने के लिए उठाए जा रहे क़दमों का स्वागत करते हुए नेपाल योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉक्टर गणेश गुरुंग कहते हैं, भारत-नेपाल की सीमा पार कर नौकरी करने या मौसमी काम करने के लिए जाने वाले अत्यंत ग़रीब लोग हैं।  उन्हें हमेशा ख़तरा रहता है, हर हालत में उनकी हिफ़ाज़त की जानी चाहिए। भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहतर करने के कई प्रयास हुए जिनमें मज़दूरों का आना-जाना भी शामिल है। 1950 की शांति संधि की समीक्षा के लिए 2016 में बनी कमेटी इमीनेंट पर्सन्स ग्रुप (ईपीजी) ने सीमा पर लोगों के आवागमन के बारे में कई सुझाव दिए थे. कई बैठकों के बाद कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मुकम्मल कर ली है लेकिन दोनों में से किसी भी सरकार ने अभी तक कमेटी की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया है। 


आगे की चुनौती


विशेषज्ञों का कहना है कि ईपीजी रिपोर्ट एक आवश्यक आधार हो सकती है जिसके सहारे दोनों देशों के प्रवासी कामगारों के नियमों में सुधार और उनकी सुरक्षा के लिए उपाय सुझाए जा सकते हैं। साल 2009-10 के दौरान डॉक्टर गणेश गुरुंग जब योजना आयोग के सदस्य थे तब उन्होंने भारत जा रहे मज़दूरों की सुरक्षा के लिए कुछ प्रस्ताव रखे थे लेकिन उनके अनुसार, मेरे प्रस्तावों ने योजना आयोग में हंगामा खड़ा कर दिया था।  तीन वर्षीय योजना में इसे किसी तरह शामिल तो कर लिया गया लेकिन ज़मीन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 10 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हुए वो कहते हैं, सुधार शुरू करने का ये सबसे बेहतर समय है। दिल्ली स्थित नेपाली पत्रकार सुरेश राज कहते हैं कि दोनों देशों को अपने-अपने प्रवासी कामगारों की सुरक्षा के लिए तत्काल क़दम उठाने चाहिए, उनका पंजीकरण करना चाहिए और उन्हें कोई प्रमाण पत्र जारी करना चाहिए। 


वे कहते हैं, कौन सीमा पार कर रहा है एक बार अधिकारी जब इसका पंजीकरण शुरू कर देंगे तो उसके बाद दिल्ली स्थित नेपाली दूतावास के अधिकारियों के लिए भारत में काम कर रहे नेपाली कामगारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना थोड़ा आसान हो जाएगा। लेकिन नेपाली दूतावास के एक अधिकारी कहते हैं कि दोनों देशों को बहुत संभलकर काम करना होगा। वो कहते हैं। अगर हम अपने कामगारों को विदेशी रोज़गार परमिट जारी करना शुरू करते हैं, जो सदियों से बिना किसी रोक-टोक के सीमा पार करते रहे हैं तो इससे भारत-नेपाल के रिश्तों पर असर पड़ेगा. हमें बहुत ज़्यादा सावधानी बरतने की ज़रूरत है. लेकिन मज़दूरों के प्रवासन को नियमित और नियंत्रित किया जाना अत्यंत ज़रूरी है। भारत-नेपाल के बीच ऐसे श्रम-संबंधों को देखते हुए ये कहना मुश्किल है कि नेपाल की सरकार सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का कुछ ही दिनों में कैसे और क्या जवाब देगी। सूत्र hjk


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