पाकिस्तान में डॉक्टरों ने ये चेतावनी दी है कि पहले से ही कमज़ोर स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना वायरस के मरीज़ों के कारण चरमरा सकती है.अभी तक पाकिस्तान में कोरोना के कारण मरने वालों की संख्या 2000 से भी कम है. शुरू में लोगों ने जैसा सोचा था, अभी तक पाकिस्तान पर वैसा असर नहीं पड़ा है.लेकिन जिस तेज़ी से नए मामले बढ़ रहे हैं, मृत्यु दर भी बढ़ रही है और लॉकडाउन की पाबंदियाँ भी हटा ली गई हैं, डॉक्टरों को लगता है कि कई बड़े अस्पतालों के आईसीयू मरीज़ों से क़रीब-क़रीब भर गए हैं.आँकड़ों के मुताबिक़ कराची में कोविड-19 मरीज़ों के लिए केवल कुछ ही बेड्स उपलब्ध हैं. कराची की आबादी क़रीब एक करोड़ 50 लाख है।
लाहौर में तो एक डॉक्टर ने न्यूज़ चैनल को बताया कि कैसे उन्हें एक मरीज़ को लौटाना पड़ा, जबकि उन्हें वेंटिलेटर की आवश्यकता थी. उस मरीज़ को दो अन्य अस्पतालों ने भी भर्ती नहीं किया था। पेशावर और क्वेटा के स्वास्थ्यकर्मियों का भी कहना है कि उन पर भी इसी तरह का दबाव है। अधिकारी ये तो मान रहे हैं कि कुछ अस्पतालों में जगह नहीं है, लेकिन वे इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि अभी भी बड़ी संख्या में बेड्स उपलब्ध हैं। अधिकारियों का कहना है कि वे लोगों को इसकी जानकारी दे रहे हैं कि किस अस्पताल में बेड्स उपलब्ध हैं॰ कराची में मरीज़ों के लिए अन्य जगहों की व्यवस्था का काम चल रहा है। लेकिन डॉक्टर्स गंभीर मरीज़ों की बढ़ती संख्या को लेकर चिंतित हैं। उनका ये भी कहना है कि भरोसे की कमी और कई तरह की साज़िश की थ्योरी के कारण मरीज़ों के इलाज की उनकी कोशिश में रुकावट आ रही है।
क्वेटा के एक शीर्ष डॉक्टर ने बताया, कई बीमार लोग घर पर ही रहना चाहते हैं,जब उनकी स्थिति काफ़ी गंभीर हो जाती है। तभी वे अस्पताल आते हैं. इस कारण अस्पताल पहुँचते ही कई मरीज़ों की जान चली जाती है. कई मामलों में तो मरीज़ एंबुलेंस में ही दम तोड़ देते हैं. हमें कई मरीज़ों के इलाज का मौक़ा तक नहीं मिलता। साथ ही स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर भी चिंता है. कई मरीज़ और उनके परिजन क्वारंटीन होना नहीं चाहते तो कई जगह अफ़वाहों का बाज़ार गर्म है, एक अफ़वाह ये भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) डॉक्टरों को पैसे दे रहा है और डॉक्टर्स जान-बूझकर लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित बता रहे हैं।
अपना नाम न बताने की शर्त पर कराची के एक डॉक्टर के अनुशार हाल ही में उनके एक मित्र ने उनसे सलाह माँगी और कहा- मेरे बेटे को फ़्लू और बुख़ार है. लेकिन मैं उसे अस्पताल नहीं ले जाना चाहता। क्योंकि डॉक्टर हर बुख़ार को कोरोना ही बता रहे हैं और वे प्रति कोरोना मरीज़ के लिए 500 रुपए लेते हैं। ये आपको भले ही हास्यास्पद लगे, लेकिन इसके ख़तरनाक नतीजे सामने आ रहे हैं और ऐसा सिर्फ़ मरीज़ों के लिए नहीं है. कराची, पेशावर और लाहौर के कई अस्पतालों में मरीज़ों के परिजनों ने स्वास्थ्यकर्मियों पर हमले किए हैं। कराची के जिन्नाह पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सेंटर में एक कर्मचारी को लोगों ने इसलिए पीट दिया, क्योंकि मरीज़ का शव परिजनों को तुरंत नहीं दिया जा सका था। पाकिस्तान में आम तौर पर लोगों का अंतिम संस्कार जल्द से जल्द कर दिया जाता है। इस्लामिक परंपरा के मुताबिक़ आम तौर पर जनाज़े में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं. लेकिन कोरोना से होने वाली मौतों में ये संभव नहीं होता. एक शीर्ष डॉक्टर याहया तुनियो ने बीबीसी को बताया कि स्वास्थ्यकर्मी कोरोना वायरस से भी लड़ रहे हैं और लोगों की अनभिज्ञता से भी।
लाहौर के मेयो अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर जमाल अवान ने बताया कि कई हिंसक घटनाओं के कारण अस्पताल की सुरक्षा बढ़ानी पड़ी है. उनका कहना है कि लोग संसाधन की कमी के कारण नाराज़गी तो दिखा ही रहे हैं, उनमें ये भी डर है कि डॉक्टर्स ज़हरीला इंजेक्शन देकर मरीज़ों को मार रहे हैं। उन्होंने उन स्वास्थ्यकर्मियों के लिए किट्स की कमी पर चिंता व्यक्त की, जो सीधे तौर पर तो कोरोना संक्रमण के इलाज से नहीं जुड़े हैं, लेकिन वो अन्य मरीज़ों की देखभाल करते हैं और उनकी कभी जाँच भी नहीं होती.। कई डॉक्टरों का कहना है कि अभी महामारी का बुरा दौर आया नहीं है. उन्होंने इस पर निराशा भी जताई कि पिछले महीने कैसे लॉकडाउन प्रतिबंध हटा लिए गए। डॉक्टर इस बात से भी चिंतित हैं कि अस्पताल के बाहर की ज़िंदगी सामान्य सी होने लगी है लाहौर के मेयो अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर रिज़वान सैगल ने बताया कि कोरोना महामारी से पहले भी वो कई लोगों को वेंटिलेटर्स के लिए गिड़गिड़ाते देखते थे और अब तो स्थिति काफ़ी डरावनी है। उनका कहना है कि अगर पाकिस्तान में कोरोना के मामले ऐसे ही बढ़ते रहे तो हमारे अस्पताल भर जाएँगे. हमारे पास पर्याप्त आईसीयू या वेंटिलेटर्स नहीं हैं। हालाँकि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान कह चुके हैं कि लॉकडाउन उन लोगों के लिए काफ़ी महंगा साबित हो रहा था, जो पहले से ही काफ़ी ग़रीब हैं। इस सप्ताह के शुरू में उन्होंने टेलीविज़न पर दिए अपने संदेश में कहा था, हमारे देश की आबादी के 25 फ़ीसदी लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हैं। यानी ऐसे लोगों की संख्या 5 करोड़ है और उन्हें दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं है। अगर हम वुहान और यूरोप की तरह लॉकडाउन लागू करेंगे, तो उनका क्या होगा,इमरान ख़ान ने लोगों से अपील की कि वे सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करें, उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है. कई बार उनकी स्थानीय अधिकारियों से इसे लेकर विवाद भी हुआ है. इनमें से एक सिंध प्रांत है, जिसकी सत्ता विपक्ष के पास है, सिंध ने मार्च में ही अपने यहाँ सख़्त लॉकडाउन लागू कर दिया था।
कराची के जिन्नाह पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल सेंटर में काम करने वाले डॉक्टर याहया तुनियो का कहना है कि लॉकडाउन पाबंदियों में ढील के कारण कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है। उन्होंने बताया कि उनके अस्पताल में आईसीयू बेड्स फुल हैं और नए मरीज़ों को दूसरी जगह भेजना पड़ रहा है। लेकिन अन्य अस्पतालों का भी यही हाल है, ये काफ़ी तनावपूर्ण और दबाव वाली स्थिति है,एक अन्य स्वास्थ्यकर्मी इस बात से चिंतित हैं कि कहीं वे अपने घर पर अपने रिश्तेदारों को संक्रमित न कर दें. वे हज़मत सूट में घंटों-घंटों तक अधिक तापमान में काम कर रही हैं। लेकिन वो उस समय ज़्यादा चिंतित हो जाती हैं, जब वे बड़ी संख्या में लोगों को सड़कों पर घूमते देखती हैं। वो कहती हैं, ये दिल को काफ़ी चोट पहुँचाने वाला ह,. हम कैसी परिस्थिति में उनके लिए काम कर रहे हैं, जो अपने आप का भी ख़्याल नहीं रख रहे हैं. फिर भी हम अपने काम में लगे हैं।
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