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ड्रैकुला असल में कौन था और इसका उस्मानिया सल्तनत से क्या झगड़ा था?


ये दृश्य था एक मैदान का जहां एक मील इलाक़े में हर तरफ़ अर्ध-गोले की शक्ल में लगभग बीस हज़ार भाले ज़मीन में गड़े हुए थे और हर एक तुर्क क़ैदी की कटी-फटी लाश भालों में पिरोई हुई थी। 


दो सबसे ऊंचे भालों पर उस्मानिया सल्तनत के एक क्षेत्रीय अधिकारी हमज़ा पाशा और यूनानी कैटावोलिनोस की लाशें थीं, जिनकी मौत को कई महीने बीत चुके थे। उनके बचे हुए क़ीमती लिबास के कुछ चीथड़े हवा में लहरा रहे थे जो कभी उनके जिस्मों पर मौजूद थे, जबकि हवा में मौजूद एकमात्र गंध सड़े हुए इंसानी गोश्त की थी। यूनानी इतिहासकार चालकोंडिल्स लिखते हैं कि ये वो दृश्य है जिसने जून 1462 में यूरोप के एक राज्य ट्रांसिल्वेनिया के शहर टर्गोविस्ते से 60 मील दूर उस्मानिया सल्तनत के सातवें सुल्तान मोहम्मद द्वितीय की फ़ौज के हरावल दस्ते का स्वागत किया था। सुल्तान मोहम्मद द्वितीय जब 17 मई 1462 को इस्तांबुल से यूरोप में डेन्यूब नदी के पार वालीचिया के बादशाह, शहज़ादा विलाद तृतीय ड्रैकुला को सबक़ सिखाने के लिए निकले थे, तो कम ही लोगों ने सोचा होगा कि इस मुहिम का इस तरह अंजाम होगा। 


इतिहासकार रादो फ्लोरेस्को और रेमंड मैकनली ने अपनी किताब 'ड्रैकुला: प्रिन्स ऑफ़ मेनी फैसेज़, हिज़ लाइफ़ एंड टाइम्स' में यूनानी इतिहासकार के हवाले से लिखा है कि इस दृश्य ने सुल्तान मुहम्मद पर ऐसा प्रभाव डाला कि उन्होंने कहा, ''.इस तरह के व्यक्ति से उसकी ज़मीन छीनना बहुत मुश्किल है। उन्होंने लिखा है कि उस रात रुकने के लिए सुल्तान ने तुर्क कैम्प के चारों तरफ़ गहरी खाई खुदवाई और अगले दिन फ़ौज को ये कहते हुए वापसी का आदेश दिया कि ये इलाक़ा इतना ख़ास नहीं कि इसकी इतनी क़ीमत दी जाये,वालीचिया पहले भी उस्मानिया सल्तनत के अधीन राज्य था जो इस मुहिम के बाद भी रहा, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार इसे उस्मानिया सल्तनत के राज्य में नहीं बदला जा सका। सुल्तान वहां से ख़ुद तो वापस लौट गए, लेकिन विलाद ड्रैकुला के ख़िलाफ़ मुहिम ख़त्म नहीं हुई. वो ड्रैकुला के भाई रादो को तुर्क फ़ौज के कुछ सिपाहियों के साथ वहीं छोड़ आये थे। इस मुहिम के नतीजे में ड्रैकुला को अपना राज्य छोड़कर फ़रार होना पड़ा और उनकी जगह उस्मानिया सल्तनत का समर्थक उनका छोटा भाई रादो 'दि हैंडसम' क्षेत्रीय अधिकारी बना और फिर उन सभी वर्गों की मदद से तख़्त पर बैठा जो ड्रैकुला के अत्याचार से परेशान हो चुके थे। इतिहासकार कैरोलाइन फिंकल ने उस्मानिया सल्तनत के इतिहास पर अपनी किताब 'उस्मान का ख़्वाब' में वालीचिया के ख़िलाफ़ कार्रवाई को संक्षेप में लिखा है कि 'उस्मानिया सल्तनत के अधीन राज्य वालीचिया की तरफ़ से वार्षिक टैक्स न आने और इसके बाद उनके अधिकारी विलाद ड्रैकुला की तरफ़ से हिंसात्मक क़दम उठाने की वजह से सुल्तान मोहम्मद ने साल 1462 में डेन्यूब नदी के पार जाकर शांति स्थापित करने का आदेश दिया. कामयाब कार्रवाई के बाद विलाद के भाई रादोल को, जो विलाद के अच्छे रवैये की गारंटी के तौर पर इस्तांबुल में बंदी था, विलाद की जगह अधिकारी बना दिया गया. विलाद ख़ुद हंगरी फ़रार हो गया। 


जब सुल्तान ने यूरोप में ये मुहिम शुरू की थी, उससे लगभग दस साल पहले वो सदियों तक क़ायम रहने वाली ताक़तवर बाइज़ेनटाइन सल्तनत की अंतिम निशानी क़ुस्तुन्तुनिया (इस्तांबुल) को जीतकर 'फ़ातेह सुल्तान' की उपाधि हासिल कर चुके थे। उनकी सल्तनत एक से अधिक महासागरों में फैल चुकी थी. अपने आपको सिकंदर-ए-आज़म जैसे विजेताओं की पंक्ति में देखने वाले इस सुल्तान की नज़रें अब यूरोप में दूर तक देख रही थी। सन 1462 में इस मुहिम में उनका निशाना उस्मानिया सल्तनत के अधीन राज्य वालीचिया के शासक विलाद ड्रैकुला थे जो इतिहासकारों के अनुसार तीन साल से सुल्तान के सामने टैक्स जमा करने के लिए हाज़िर नहीं हुए थे। इसके अलावा, फ्लोरेस्को और मैकनली जैसे इतिहासकार लिखते हैं कि क़ुस्तुन्तुनिया के साथ-साथ 'बुल्गारिया, सर्बिया और यूनान के ज़्यादातर इलाक़ों पर क़ब्ज़े के बाद सुल्तान में वालीचिया को अपनी सल्तनत का राज्य बनाने का ख्याल एक क़ुदरती बात थी और उसी मक़सद को पूरा करने के लिए उन्होंने जर्मनी से पूर्व की तरफ़ बहते हुए कई देशों से गुज़रकर काले सागर में गिरने वाली डेन्यूब नदी के इलाक़ों में कार्रवाइयों का आदेश दिया था। इतिहास में, पूर्व से विजय की इच्छा लेकर पश्चिम की ओर आने वालों के लिए डेन्यूब नदी मुख्य रास्ता रहा है और वालीचिया राज्य इसी नदी के उत्तरी छोर पर स्थित था. दस लाख से कम आबादी वाले इस राज्य के शासकों के परिवार और उस्मानिया सल्तनत के बीच कई पीढ़ियों से कभी अच्छे-कभी बुरे संबंधों का सिलसिला चला आ रहा था। 


फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि अब राज्य के नए शासक शहज़ादा विलाद तृतीय ड्रैकुला की नीतियों से नाख़ुश सुल्तान ने इस परेशानी से निपटने का फ़ैसला किया। उन्होंने लिखा है कि ''ड्रैकुला और सुल्तान मोहम्मद द्वितीय के बीच जंग होना निश्चित थी, सवाल सिर्फ़ ये था कि कब? और सुल्तान मोहम्मद के साथ-साथ जवान होने की वजह से, ड्रैकुला को सुल्तान में विजय की इच्छा के बारे में अच्छी तरह पता था। मोहम्मद द्वितीय की सल्तनत की तुलना में ड्रैकुला का राज्य बहुत छोटा था, लेकिन इतिहासकार लिखते हैं कि इसमें अपने शासक होने का अहसास सुल्तान मोहम्मद द्वितीय की तुलना में किसी भी तरह कम नहीं था. ये वो ज़माना था जब ड्रैकुला की उपाधि एक सम्मान था। 


एक नहीं दो ड्रैकुला


इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार डेन्यूब नदी के इलाक़े में एक राज्य वालीचिया के एक से अधिक बार शासक रहे शहज़ादे विलाद दि इम्पेलर का पूरा नाम विलाद तृतीय ड्रैकुला था। उनका जन्म सन 1431 और मौत सन 1476 में हुई. वो ट्रांसिल्वेनिया में पैदा हुए और उनकी मौत आज के रोमानिया की राजधानी बुख़ारेस्ट के एक उत्तरी इलाक़े में हुई। रोमानिया के इतिहासकार फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि ड्रैकुला का ज़माना उस्मानिया सल्तनत में 'दो महान सुल्तानों' मुराद द्वितीय (1421-1451) और मोहम्मद द्वितीय (1451-1481) का ज़माना था. उन्होंने लिखा कि 'सुल्तान मोहम्मद द्वितीय के साथ तो हमारा नौजवान शहज़ादा (ड्रैकुला) भी जवान हुआ था। रोमानिया के इतिहासकार लिखते हैं कि ये दोनों उस्मानिया सुल्तान बहुत ही धार्मिक और नेक व्यक्तित्व के मालिक थे. 'वो दूरगामी सोच रखने वाले राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने उस ज़माने में यहूदियों और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों को पनाह देकर यूरोप को धार्मिक सहिष्णुता का सबक़ सिखाया था, जब रोमन कैथोलिक चर्च उन (अल्पसंख्यकों) पर 'अत्याचार कर रहा था। 


इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार पंद्रहवी सदी के यूरोप में विलाद ने अपने दुश्मनों पर अत्याचार की वजह से ख्याति पाई. यहीं पर ये भी लिखा है कि इतिहासकारों के एक समूह का ये भी मानना है कि ब्रेम स्टोकर के दुनियाभर में मशहूर उपन्यास का ड्रैकुला असल में यही विलाद है। विलाद के पिता विलाद द्वितीय ड्रैकूल थे. उन्हें ड्रैकूल की उपाधि उस ज़माने में रोमन सल्तनत के फ़रमारवां (होली रोमन एम्परर) सिगीसमंड की तरफ़ से तुर्कों की यूरोप में हमले को रोकने के लिए बनाये जाने वाले 'आर्डर ऑफ़ ड्रैगन' में शामिल करने की वजह से दी गई। 


इनसाइक्लोपीडिया के अनुसार ड्रैकूल शब्द लैटिन भाषा के ड्राकू शब्द से आया है जिसका अर्थ है ड्रैगन और ड्रेकुला का अर्थ है ड्रैकूल का बेटा. इस तरह विलाद द्वितीय ड्रैकूल के बेटे का नाम हुआ विलाद तृतीय ड्रैकुला. इतिहासकार ड्रैकुला की उपाधि की और भी कई वजह बताते हैं जिनमें से एक है कि रोमानिया भाषा में ड्रैकुल का अर्थ 'डेविल' भी होता है.। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार ड्रैकुला वर्ष 1442 से सन 1448 तक उस्मानिया सल्तनत में रहे और फिर वो अपने पिता और बड़े भाई की हत्या पर वापस वालीचिया आये. ड्रैकुला को अपने पिता के तख़्त पर बैठने में वालीचिया के अशराफ़िया (एक वर्ग जिसका सत्ता में दख़ल होता था, इन्हे बूयार भी कहा जाता था) समेत अपने छोटे भाई के विरोध का भी सामना था जिन्हें उस्मानिया सल्तनत का समर्थन मिला हुआ था। वो सन 1448 में पहली बार शासक बने लेकिन उन्हें जल्दी ही हटा दिया गया और फिर उन्हें अपने पिता की गद्दी प्राप्त करने में आठ साल का समय लगा. दूसरे शासनकाल के दौर में उन्होंने वो अत्याचार किये जो उनकी ख्याति की वजह बने और उन्हें विलाद दि इम्पेलर यानी कील गाड़ कर मारने वाले विलाद का नाम दिया गया। ये दौर सन 1462 में सुल्तान मोहम्मद द्वितीय की उस मुहिम के बाद ख़त्म हुआ जिसके बारे में ऊपर बताया गया है. जिसे विलाद ड्रैकुला के 'डंडों से लटकती लाशों के जंगल' की वजह से याद किया जाता है। इतिहास में है कि विलाद सन 1476 में तीसरी और आख़िरी बार अपने पिता के राज्य की सत्ता हासिल करने में कामयाब हो गए थे, लेकिन इसी साल वो 45 वर्ष की आयु में एक जंग में मारे गए।


 


विलाद तृतीय ड्रैकुला और सुल्तान मोहम्मद द्वितीय


उन दिनों शहज़ादों की पहली मुलाक़ात शायद सन 1442 में उस समय हुई जब ड्रैकुला के पिता उन्हें और उनके छोटे भाई 'दि हैंडसम' को उस्मानिया सल्तनत के साथ अपनी वफ़ादारी की गारंटी के तौर पर सुल्तान मुराद द्वितीय की हिरासत में छोड़ गए थे। इतिहासकार बताते हैं कि उस समय विलाद तृतीय ड्रैकुला की आयु ग्यारह या बारह वर्ष की थी और छोटा भाई रादो लगभग सात वर्ष का था. उस समय शहज़ादा मोहम्मद भी लगभग ड्रैकुला की आयु के ही थे। क़िस्सा कुछ यूं है कि उस समय तक यूरोप में सर्बिया और बुल्गेरिया उस्मानियों के क़ब्ज़े में आ चुके थे और सुल्तान मुराद द्वितीय सदियों पुरानी बाज़नितीनी सल्तनत को आख़िरी चोट लगाने की तैयारी में थे। 


विलाद द्वितीय ड्रैकूल जैसा कि ऊपर लिखा जा चूका है उस्मानियों और रोमन कैथोलिक चर्च के विरोधियों के लिए बनाये गए 'आर्डर ऑफ़ ड्रैगन' के सदस्य तो बन गए थे, लेकिन फ्लोरेस्को और उनके साथी लेखक मैकनली ने लिखा है कि वो एक शातिर राजनीतिज्ञ थे और जैसे ही वालीचिया की सत्ता पर उनकी पकड़ मजबूत हुई, उन्हें महसूस हुआ कि क्षेत्र में ताक़त का संतुलन उस्मानियों के पक्ष में है। इतिहासकार लिखते हैं कि स्थिति को देखते हुए अपने संरक्षक रोमन सल्तनत के सुल्तान सिगीसमंद की मौत के फ़ौरन बाद विलाद द्वितीय ड्रैकूल ने तुर्कों से संधि कर ली। ड्रैकूल और उनके तीन सौ साथी बरसा में सुल्तान मुराद के सामने पेश हुए और एक शानदार समारोह में वालीचिया के शहज़ादे ने औपचारिक तौर पर अपनी आज्ञाकारिता का एलान किया। 


बताया जाता है कि कुछ समय बाद सुल्तान मुराद के दिल में (जो दोनों इतिहासकारों के अनुसार संधियों की इज़्ज़त करने वाले शासक थे) विलाद द्वितीय के बारे में शक पैदा हो गए. विलाद द्वितीय तलब किये जाने पर अपने दो छोटे बेटों ड्रैकुला और रादो के साथ सुल्तान के सामने हाज़िरी के लिए गए. इतिहासकारों के अनुसार शहर के दरवाज़े पर ही तुर्क फ़ौजियों ने उनको ज़ंजीरों में जकड़ लिया और दोनों बेटों को दूर एक पहाड़ी किले में पहुंचा दिया। विलाद द्वितीय ड्रैकूल लगभग एक साल सुल्तान के क़ैदी रहे और उस दौरान उनका बड़ा बेटा मेर्चा जिसके सुल्तान के साथ अच्छे संबंध थे, वालीचिया के तख़्त पर बैठा। ड्रैकूल आख़िरकार क़ुरआन और बाइबिल पर उस्मानियों की वफ़ादारी की क़सम खाने के बाद आज़ाद हुए. विलाद द्वितीय ने अपनी नेक नियत साबित करने के लिए अपने दोनों छोटे बेटे भी उस्मानियों की क़ैद में छोड़ दिए। 


ड्रैकेकुला उस्मानी सुल्तान  दरबार में


ड्रैकुला के अगले छह साल अपने माता-पिता से दूर उस्मानिया सल्तनत में गुज़रे। वो स्थानीय भाषा नहीं बोल सकते थे और उनका धर्म भी अलग था. 'वास्तव में उन्होंने महसूस किया होगा कि उनके अपने लोगों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। ड्रैकुला सन 1448 में और उनके भाई रादो सन 1462 तक उस्मानिया सल्तनत में रहे। 


वालीचिया के शासकों की मुश्किल


वालीचिया की गिनती उन इलाक़ों में होती थी, जहां यूरोप के उलट तख़्त का वारिस सिर्फ बड़ा बेटा नहीं होता था बल्कि सब बेटे सत्ता हासिल करने का हक़ रखते थे. इसलिए अगर एक बेटे को पश्चिम की बड़ी ताक़त रोमन सल्तनत या हंगरी के बादशाहों का समर्थन मिल जाता था तो दूसरा उस्मानियों का सहारा हासिल करने की कोशिश करता था। यही झलक वालीचिया की सत्ता के लिए शासकों के परिवार के विभिन्न लोगों की कोशिशों में नज़र आती है. फ्लोरेस्को और मैकनली ने लिखा है कि एक तरफ विलाद कैथोलिक संस्थाओं को नज़अंदाज़ करके रोमन सल्तनत के शासक सुल्तान सिगीसमंद को नाराज़ नहीं कर सकते थे और उन्हें यह भी पता था कि वालीचिया की परम्पराओं के अनुसार किसी भी शासक के लिए ऑर्थोडॉक्स ईसाई होना ज़रूरी था। ऑर्थोडॉक्स और कैथॉलिक ईसाईयों में विरोध का इतिहास बहुत पुराना और कड़वा था. यह भी एक वजह थी कि ऑर्थोडॉक्स बाजनितीनी सल्तनत को उस्मानिया सल्तनत के ख़िलाफ़ लड़ाई में रोमन कैथॉलिक यूरोप से मदद मिलने में बहुत मुश्किल पेश आई। 


बंदी शहज़ादे विलाद तृतीय ड्रैकुला का प्रशिक्षण


उस्मानी दरबार में जब छोटे राज्यों के शहज़ादे बंदी बनकर आते थे तो उसका एक मक़सद ये होता था कि उनको अपना वफादार बनाया जाये. इतिहास बताता है कि उन शहज़ादों का प्रशिक्षण ये सोच कर किया जाता था कि अगर उनमें से कोई भविष्य में अपने राज्य का शासक बने तो उसकी वफ़ादारी उस्मानिया सल्तनत के साथ हो। उन विदेशी शहज़ादों के साथ अच्छा सलूक भी उनके पिता की उस्मानिया सल्तनत से वफ़ादारी की शर्त में शामिल था. ड्रैकुला और उनके भाई के अलावा सर्बिया के दो शहज़ादे भी उन दिनों सुल्तान के दरबार में मौजूद थे। उन शहज़ादों के अपने पिता के साथ संदिग्ध पत्राचार की वजह से उनकी आँखें निकाल दी गई थी और 'ये सब उन (दोनों शहज़ादों) की बाईस वर्षीय ख़ूबसूरत बहन शहज़ादी मारा के आंसुओं के बावजूद हुआ जो उस समय सुल्तान मुराद द्वितीय की पत्नी थी। 


ड्रैकुला का प्रशिक्षण उस समय के बेहतरीन उस्तादों ने किया. इतिहासकारों के अनुसार एक से अधिक यूरोपीय भाषा वो पहले से जानते थे और अब वो तुर्की ज़बान के भी माहिर हो गए थे. इतिहास से पता चलता है कि उनके उस्तादों में 'मशहूर कूर्द दार्शनिक अहमद गुरानी भी शामिल थे जिनको सल्तनत के उत्तराधिकारी को भी प्रशिक्षण के दौरान कोड़ा मारने का अधिकार था। उनको क़ुरआन के अलावा, अरस्तु का तर्कशास्त्र और गणित की शिक्षा दी गई. फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि ड्रैकुला एक मुश्किल विद्यार्थी था जिसे अपने गुस्से पर काबू नहीं रहता था और कई बार कोड़े मारे गए। इतिहासकारों के अनुसार इसके उलट उनके भाई को अपनी अच्छी शक्ल व सूरत की वजह से दरबार के पुरुष और महिलाओं दोनों से खूब आकर्षण मिला. उन दोनों भाइयों के विभिन्न किरदार और उनके साथ किये जाने वाले अलग अलग सलूक, उन दोनों में एक दूसरे के लिए बहुत ज़्यादा नफ़रत की वजह बन गई जिसके दूरगामी नतीजे निकले। 


इसी दौरान उस्मानी ड्रैकुला के पिता और वालीचिया के शासक विलाद द्वितीय पर शक करने लगे. दोनों शहज़ादों के सिर पर तलवार लटकने लगी लेकिन उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई। इतिहासकारों का कहना है कि लंबे अरसे तक उनका समय इसी शक की स्थिति में गुज़रा. फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि इस माहौल ने ज़रूर विलाद ड्रैकुला पर गहरा असर छोड़ा होगा. इन इतिहासकारों के अनुसार उन्हें एक तरफ महसूस हुआ होगा कि पिता और बड़े भाई ने उनकी ज़िन्दगी ख़तरे में डाल दी है और दूसरा ये कि वो किसी भी समय सुल्तान के हाथों क़त्ल हो सकते हैं। सन 1447 में विलाद ड्रैकुला के पिता और भाई यूरोप के उन इलाक़ों की राजनीति का शिकार हो कर क़त्ल हो गए. ड्रैकुला अब आज़ाद थे. उन्हें उस्मानी फ़ौज में अधिकारी बना दिया गया और ऐसा ज़ाहिर किया गया कि उस्मानिया सल्तनत उन्हें ही वालीचिया में उनके पिता के तख्त पर देखना चाहती है. फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि सुल्तान मुराद द्वितीय उनसे बहुत प्रभावित थे.। 


विलाद ड्रैकुला वालीचिया के शासक


फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि सन 1456 में आसमान एक दमदार सितारे से रोशन हो गया और लोगों ने जंगों, महामारियों और प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी की. ये उन्हीं दिनों की बात है जब 25 वर्षीय विलाद ड्रैकुला आठ साल की लंबी कोशिशों के बाद दूसरी बार अपने पूर्वजों के राज्य वालीचिया के तख़्त पर बैठने में कामयाब हुए थे। फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि इस बार भी एक महीने के अंदर ही उस्मानियों को उनकी वफ़ादारी पर शक होने लगा था और सुल्तान मुहम्मद का एक प्रतिनिधि वालीचिया भेजा गया. ड्रेकुला ने उस समय उस्मानिया सल्तनत की शर्तें मान ली लेकिन उन्होंने अपने पिता वाली ग़लती नहीं दोहराई जो उन्होंने सन 1442 में खुद उस्मानी सल्तनत में जाकर की थी। विलाद का राज्य बहुत बड़ा नहीं था लेकिन खूबसूरत पहाड़ों, घने जंगलों, झीलों और उपजाऊ मैदानी क्षेत्र में फैला हुआ था. इतिहासकारों के अनुसार उनका महल जिसके निशान आज भी मौजूद हैं, कई बार तुर्कों के हाथों तबाह हुआ और फिर दोबारा बना। 


विलाद ड्रैकुला के अत्याचार


विलाद ड्रैकुला की सभी नीतियों का मक़सद राज्य में ताक़त अपने हाथ में लेना था उन्होंने पश्चिमी यूरोप की कुछ दूसरे राज्यों की तरह एक फ़ौज बनाई जिसकी वफ़ादारी सिर्फ उनके साथ थी। फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि ड्रैकुला कहा करता था जो शहज़ादा घर में कमज़ोर हो तो वो बाहर अपनी मर्ज़ी नहीं कर सकता और इसीलिए पहले दो साल उन्होंने अपने पश्चिमी पड़ोसी हंगरी और पूर्वी पड़ोसी उस्मानिया सल्तनत को खुश करने की नीति अपनाई ताकि अपने घर की परेशानी को हल कर सके। शासकों के जल्दी-जल्दी बदलने की वजह से ताक़त इलाक़े के अशराफिया के हाथ में जा चुकी थी जिन्हे बूयार कहते थे. इतिहास से पता चलता है कि सन 1418 के बाद आधी सदी में वालीचिया के शासक बारह बार बदले थे यानी औसतन एक शासक दो साल तख़्त पर बैठा। ड्रैकुला को ये अहसास था कि बूयार उस्मानियों को खुश रखने में यक़ीन रखते थे. इसके अलावा वालीचिया के उनसे पहले वाले शासकों के समर्थक अब भी राज्य में मौजूद थे और ड्रैकुला के लिए उनसे अपने भाई मेर्चा की मौत का बदला लेना भी बाकी था.फ्लोरेस्को और मैकनली रोमानिया के 17वीं सदी के एक इतिहासकार और यूनानी इतिहासकार चालकिंडाइलज़ का हवाला देते हुए बताते हैं कि सन 1457 में जब लगभग दो सौ बूयार परिवार और कुछ ख़ास पदाधिकारी ईस्टर के समारोह के लिए उनके महल में एकत्र थे तो उन्हें पकड़ लिया गया। 


ड्रैकुला के फौजियों ने उनमें से बड़ी उम्र के लोगों के शरीर में नीचे से कीलें गाड़कर शहर की दीवार के बहार डंडों पर लटका दिया। उन परिवारों के स्वस्थ लोगों को उनके पूर्वजों के ज़माने के एक पुराने क़िले के खंडहरों की मरम्मत के लिए दूर एक पहाड़ी छोटी पर ले जाकर जबरन मज़दूरी पर लगा दिया गया. इस क़िले को ड्रैकुला का क़िला कहा जाता है। 


इतिहासकार बताते हैं कि किसी अधीन राज्य के शासक के लिए इस तरह का क़िला बनवाना दो ताक़तवर पड़ोसियों हंगरी और उस्मानिया सल्तनत के आदेशों के ख़िलाफ़ था. कहा जाता है कि इसी क़िले में एक ख़ुफ़िया रास्ता था जिसके ज़रिये सन 1462 में जब उनसे सत्ता छिनी तो ड्रैकुला भागने में कामयाब हुए थे। फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि उनकी सत्ता के इस दौर में इलाक़े की पुराने अशराफिया कीलों के ज़रिये या ड्रेकुला के मशहूर क़िले में जबरन मज़दूरी लगभग ख़त्म हो गई थी. उनकी जगह जिन लोगों ने ली उनमें से 90 प्रतिशत निचले तबके से आये थे या वो जो पहले आज़ाद किसान थे। दुश्मनों को भालों पर गाड़ने वाले ख़ास लोगड्रैकुला ने 'आरमाजी' के नाम से एक नया पद बनाया. ये आरमाज सिर्फ ड्रैकुला के आदेश के अधीन थे और उनका काम नई न्याय व्यवस्था को लागू करवाना था. उनमें रोमानियाई लोगों के अलावा हंगरी, तुर्क, सर्ब, तातार कुछ हब्शी भी शामिल थे.' उनका वेतन बहुत अच्छा था और ये किसी उसूल के पाबंद नहीं थे। ये ड्रैकुला की 'कुल्हाड़ियां' थे, 'भालों पर लटकाने के माहिर. 'लेकिन फ्लोरेस्को और मैकनली बताते हैं कि ये वर्ग भी ड्रैकुला के वफ़ादारी के जज़्बे से ज़्यादा अपने फायदे के लिए काम करता था और जब उनके दौर के आख़िरी समय में उनके राज्य से लोगों का निर्वासन बढ़ गया तो ये आरमाजी भी काम न आये. आरमाजी के अलावा भी उस दौर में कई हथियारबंद दस्ते बनाये गए थे। इतिहासकार कहते हैं कि 'उनके उलझे हुए दिमाग़ में अत्याचार और धर्म एक हो गए थे और वो कई बार अपने अपराध के बचाव में धर्म का सहारा लेते थे। 


'राजनयिकों के सिर में कील ठोकने की घटना'


फ्लोरेस्कों और मैकनली ने अपनी किताब में उस ज़माने के एक जर्मन माईकल बेहम का सन्दर्भ दिया है जिन्होंने इटली से ड्रैकुला के दरबार में कुछ राजनयिकों के आने की घटना का ज़िक्र किया था। माइकल बेहम ने लिखा कि उनकी जानकारी के अनुसार, उन राजनयिकों ने ड्रैकुला के सामने सम्मान में अपनी बड़ी टोपियां तो उतारी, लेकिन उनके नीचे पहने जाने वाली 'स्कल कैप' सिर पर रहने दी और कहा कि उनकी परम्पराओं के अनुसार स्कल कैप तो सुल्तान के सामने भी नहीं उतारी जाती। किताब में आगे लिखा गया कि ड्रैकुला ने ये सुनकर उन सबकी 'स्कल कैप' पर उनके सिरों के बीच में कील ठोकने का आदेश दिया और इस दौरान वो उन राजनयिकों से कहते जाते थे कि 'यक़ीन करें, मैं तो आपकी परम्परा और भी मज़बूत कर रहा हूं.। 


ड्रैकुला किनके हीरो हैं?


ड्रैकुला ने जहां अशराफिया को ख़त्म किया वहीं किसानों की मदद की. उन्होंने सन 1459 के बाद उस्मानी सल्तनत को टैक्स देना बंद कर दिया था और इस तरह से किसान उस टैक्स से आज़ाद हो गए थे. इसके अलावा उन्होंने उस्मानी फ़ौज के लिए पांच सौ लड़के देने से भी मन कर दिया. इतिहासकार बताते हैं कि किसी अधीन राज्य से वैसे भी लड़के नहीं लिए जाते थे लेकिन उनसे ये कहा गया। इतिहासकारों के अनुसार, कहा जाता है कि ड्रैकुला के दौर में बड़े लोग पैसे देकर सजा से नहीं बच सकते थे जैसा कि पहले होता था. और इसी वजह से सन 1462 में उस्मानी हमले के जवाब में किसानों ने ड्रैकुला का साथ दिया। इतिहास से पता चलता है कि वो किसानों की हालत का पता लगाने के लिए रातों को भेष बदलकर भी निकलते थे. फ्लोरेस्कों और मैकनली की किताब में रोमानिया की लोक कहानियों में से एक क़िस्सा दर्ज है कि एक बार एक किसान को छोटे साइज़ के कपड़े पहने देखकर ड्रैकुला ने उसकी पत्नी को कंजूसी के आरोप में वहीँ उसमें नीचे से कीले गाड़कर मौत की सजा दे दी.


किसान ने बहुत मिन्नत की कि वो इस औरत के साथ खुश है लेकिन ड्रैकुला ने कहा कि इसके बाद जो पत्नी मिलेगी वो उसे और भी खुश रखेगी। इतिहास से पता चलता है कि उनके दौर में शादी से पहले सेक्स करने वाली और शादी के बाद पति के अलावा किसी दूसरे के साथ सेक्स करने वाली महिलाओं को बहुत ही कड़ी सज़ाएं दी गई। क़िस्से मशहूर हैं कि किस तरह एक बार उन्होंने भिखारियों के एक गिरोह की अच्छी तरह सेवा करने के बाद उसी कमरे में ज़िंदा जला दिया था कि ये लोग दूसरों की मेहनत पर जीना चाहते हैं। 


सुल्तान मोहम्मद द्वितीय की ड्रैकुला के ख़िलाफ़ मुहिम


जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि ड्रैकुला ने सन 1459 के बाद उस्मानिया सल्तनत को टैक्स देना बंद कर दिया था और इसके अलावा भी सल्तनत के अनुसार उत्तेजक कार्रवाई में लगे रहे। उस्मानिया सल्तनत और ड्रैकुला के बीच संपर्क भी हुए लेकिन इस दौरान ड्रैकुला के हाथों दो उस्मानी उच्चाधिकारी क़त्ल हो गए और उन्होंने तुर्की में महारत का फायदा उठाते हुए उस्मानी क़ब्ज़े में एक क़िले का दरवाज़ा खुलवाकर उसे जला दिया और फिर औपचारिक तौर पर जंग छिड़ गई. ड्रैकुला ने धर्म के नाम पर यूरोप की दूसरी ताक़तों से मदद भी मांगी लेकिन कुछ मामलों में स्थानीय हालात और कुछ में ऑर्थोडॉक्स और कैथॉलिक ईसाइयों में ऐतिहासिक मतभेदों की वजह से उन्हें कुछ ज़्यादा अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली लेकिन इतिहासकार लिखते हैं कि इस बात ने उन्हें उस्मानिया सल्तनत के मुक़ाबले में जाने से नहीं रोका। उन्होंने उस्मानिया सल्तनत के विरुद्ध पूरे इलाक़े में छोटी-छोटी गुरिल्ला कार्रवाइयों की शुरुआत कर दी जबकि सुल्तान खुद उस समय एशिया में जंग की मुहिमों में शामिल थे। इतिहास में ड्रैकुला की तरफ से उन्हीं दिनों में पोप के नाम लिखे गए एक पत्र का ज़िक्र होता है कि '....हमने 23884 तुर्क और बल्ग़ार मार दिए और उनमें वो शामिल नहीं जिन्हें उनके घरों में जला दिया गया या जिनके सिर हमारे फौजियों ने नहीं काटे. 


इतिहासकार बताते हैं कि ड्रैकुला के हाथों मौतों और नुकसान की बात सुनकर सुल्तान खुद 17 मई 1462 को वालीचिया जीतने के लिए चल दिए. ड्रैकुला ने जल्द से जल्द यूरोप से मदद मांगी कि अगर उनकी हार हो गई तो ये सभी ईसाइयों के लिए ख़तरनाक होगा. लेकिन इतिहासकार लिखते हैं कि उन्हें उतनी मदद नहीं मिली जितनी उन्हें उम्मीद थी। 


फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि सन 1462 में गर्मी बहुत ज़्यादा थी. ड्रैकुला ने सारी आबादी को पहाड़ों, जंगलों और दलदली इलाक़ों में भेज दिया था. उस्मानी फ़ौज को कई दिन की यात्रा के बाद लड़ाई का मौक़ा नहीं मिला और प्यास की परेशानी अलग थी. उसने गुरिल्ला हमलों से भी तुर्कों का बहुत नुकसान किया। उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि ड्रैकुला ने सुल्तान को मारने के इरादे से एक रात उनके कैम्प पर अचानक हमला भी किया जो नाकाम रहा. अंत में जब सुल्तान की फ़ौज ड्रैकुला की राजधानी के नज़दीक पहुंची तो उन्होंने वो दृश्य देखा जिसका इतिहास में सबसे अधिक ज़िक्र होता है. 'एक अर्ध गोले की शक्ल में एक मील तक हज़ारों भाले ज़मीन में गड़े थे और उन पर लगभग 20 हज़ार तुर्क फौजियों की सड़ी-गली लाशें थी। 


फ्लोरेस्को और मैकनली लिखते हैं कि सुल्तान मोहम्मद द्वितीय अगले दिन वापस लौट गए, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि ड्रैकुला जंग जीत गए. सुल्तान उस समय ड्रैकुला के भाई रादो दि हैंडसम को कुछ तुर्क फ़ौज के साथ वहीँ छोड़ आये ताकि वो स्थानीय लोगों को अपने साथ मिलाकर और अशराफिया के समर्थन से अपने भाई की जगह तख़्त पर बैठ जाये. 'इसके बदले में तुर्कों ने राज्य की पारम्परिक संप्रभुता की गारंटी दी। उन्होंने किताब में लिखा है कि स्थानीय आबादी ने ड्रैकुला के अत्याचारी प्रशासन की तुलना में रादो को प्राथमिकता दी जिसके समर्थन के बदले में उस्मानियों ने वादा किया कि ज़बरदस्ती फ़ौज में लड़कों की भर्ती भी बंद हो जाएगी। 


ड्रैकुला का भागना-


ड्रैकुला ने भागने के बाद हंगरी के बादशाह से समर्थन मांगा लेकिन उन्होंने उनके भाई रादो के समर्थन का एलान कर दिया और सुल्तान मोहम्मद से पांच साल की संधि कर ली. ड्रैकुला अब ताक़तवर शहज़ादे नहीं थे बल्कि उनके पास सिर्फ गुज़रे हुए कारनामों का ज़िक्र था. हंगरी के बादशाह ने अपनी सभी सीमाओं पर राजनीतिक स्थिति का निरीक्षण करते हुए ड्रैकुला को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन यूरोप में ड्रैकुला की गिरफ्तारी के ख़िलाफ़ एक लहर दौड़ गई क्योंकि कुछ महीने पहले ही तो वो सुल्तान मोहम्मद द्वितीय का मुक़ाबला करने और उनके अनुसार 'हारने' की वजह से सबके हीरो बने थे। हंगरी के बादशाह ने ज़ाहिर तौर पर ड्रैकुला की तरफ से सुल्तान मोहम्मद के नाम कुछ पत्र लिखकर उनकी गिरफ्तारी की वजह पैदा करने की कोशिश की. इसके अलावा जर्मन इलाक़ों में लोग अभी उनके दौर के अत्याचार नहीं भूले थे। 


फ्लोरेस्को और मैकनली बताते हैं कि ड्रैकुला का स्टेटस किसी आम क़ैदी का नहीं था बल्कि कुछ समय बाद वो हंगरी के दरबार में भी बैठने लगे थे. कई बार हंगरी के बादशाह ने सोच समझकर उन्हें उस्मानी प्रतिनिधियों के साथ वार्ता के दौरान दरबार में बैठाया. वो 12 वर्ष तक हंगरी में इसी तरह क़ैद रहे.। फ्लोरेस्को और मैकनली ने अपनी किताब में उस ज़माने के कुछ अधिकारियों के सन्दर्भ से लिखा है कि ड्रैकुला जेल में जानवर मंगवाकर उन पर अपने क़ैदियों को पूर्व में दी गई सज़ाओं के तरीके आज़माते थे


ड्रैकुला की आख़िरी लड़ाई


इसी बीच ड्रैकुला के भाई रादो के हाथ से वालीचिया की सत्ता निकल गई और सन 1475 में उनकी मौत हो गई. हंगरी ने भी इस अवसर पर ड्रैकुला को दोबारा तख़्त पर बैठाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया। ड्रैकुला ने हंगरी के बादशाह के साथ बोस्निया में तुर्कों के ख़िलाफ़ फिर से मुहिम में हिस्सा लिया और कामयाबी हासिल की. इतिहासकार लिखते हैं कि हंगरी के बादशाह मैथियस ने उनसे ऑर्थोडॉक्स धर्म छोड़कर कैथॉलिक धर्म अपनाने का वादा कराया और उनके तीसरी बार वालीचिया का शासक बनने का समर्थन कर दिया। ड्रैकुला नवंबर 1476 में आख़िरी बार गद्दी पर बैठे और अगले ही महीने दिसंबर में लड़ाई में तुर्कों के हाथों मारे गए. लेकिन उनके आख़िरी क्षणों के बारे में बहुत सी राय हैं। 


भालों पर गड़ी इंसानी लाशों का मैदान: इतिहास और विलाद तृतीय ड्रैकुला


इतिहासकार मातई कज़ाको अपनी किताब 'ड्रैकुला' में सन 1463 में चार से छह पेज की एक पुस्तिका का ज़िक्र करते हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि ये वयाना में प्रकाशित हुई थी और इसका शीर्षक था 'व्यूवुड ड्रैकुला का इतिहास। कज़ाकों कहते हैं कि इस पुस्तिका के अज्ञात लेखक के अनुसार ड्रैकुला इतिहास का सबसे ज़्यादा हिंसक और क्रूर शासक था। सिर्फ अपने ही लोगों पर नहीं बल्कि दूसरों उदाहरण के तौर पर यहूदियों, ईसाईयों, तुर्कों, जर्मनों, इतालवी पैगन लोगों पर भी किये गए अत्याचार प्रभावित किए बिना नहीं रहते। 


उन्होंने इस पुस्तिका का सन्दर्भ देते हुए लिखा कि ड्रैकुला ने इंसानी शरीर में भाले गाड़कर मारने की सजा को और भी तकलीफ देने वाला बनाया. वो तेज़ नोक की बजाये भाले का मुंह गोल ही रखते थे और उनको ज़मीन में गाड़कर इंसानों को उसके ऊपर बैठा देते और इस तरह इंसान के शरीर के दबाव से भाला आहिस्ता-आहिस्ता शरीर में धंसता चला जाता और उसकी जान निकलने में दो से तीन दिन लगते. 'इस दौरान उनके पूरे होश में कौवे उनकी आँखें भी निकाल देते। कज़ाकों लिखते हैं कि इतिहास के बड़े-बड़े अत्याचारियों को भी ध्यान में रखें तो भी ड्रैकुला के बारे में लिखी गई बातें असामान्य हैं। लेकिन इस किताब के परिचय में एक और पुस्तिका का भी ज़िक्र है जो हमें बताती है कि ये सन 1486 के अंत में रूस में बांटी गई थी. 'हमारी जानकारी के अनुसार ये कभी प्रिंट नहीं हुई लेकिन इसकी हाथ से लिखी गई कम से कम 22 कॉपिया थी। यहां ड्रैकुला को एक सख़्त लेकिन एक न्याय प्रिय शासक के तौर पर पेश किया गया है, एक ऐसा समझदार और सभ्य शासक जो अपने राज्य को तुर्कों से बचाने की कोशिश में लगा हुआ है। किताब के परिचय में लिखा है कि विलाद तृतीय को लैटिन, जर्मन, रूसी और बाल्कान की किताबों में एक क्रूर शासक के तौर पर दिखाया गया है और इन सबने अपनी-अपनी वैचारिक और राजनीतिक ज़रुरत के हिसाब से उनकी तस्वी खींची और हमें इसको जांचने की ज़रुरत है। ड्रैकुला के अपने इलाक़े वालीचिया के बारे में लिखा गया है कि वहां समय के साथ साथ विलाद तृतीय को भुला दिया गया था. उनका दोबारा ज़िक्र 19 वीं सदी में जर्मन, रूसी और हंगरी के इतिहासकारों की तरफ से पुरानी पुस्तिका और लेखों की सूरत में सामने आया। रोमानिया के इतिहासकारों के लिए अहम सवाल ये था कि एक तरफ बहुत क्रूर शहज़ादे का रूप था और दूसरी तरफ एक ऐसे व्यक्ति का जिसने उस्मानिया सल्तनत के विजेता सुल्तान मोहम्मद द्वितीय का मुक़ाबला करने में बहुत ही हिम्मत दिखाई थी। आख़िरकार ड्रैकुला यानी विलाद तृतीय को रोमानिया (1918 में वालीचिया, माल्डोविया और ट्रांसिल्वेनिया के मिलने से नए देश के रूप में उभरा) के बचाव के लिए किये गए कार्यों की वजह से नेशनल हीरो के रूप में स्वीकार कर लिया गया। सूत्र HJK:


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